वांछित मन्त्र चुनें

आ घा॒ योषे॑व सू॒नर्यु॒षा या॑ति प्रभुञ्ज॒ती । ज॒रय॑न्ती॒ वृज॑नं प॒द्वदी॑यत॒ उत्पा॑तयति प॒क्षिणः॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā ghā yoṣeva sūnary uṣā yāti prabhuñjatī | jarayantī vṛjanam padvad īyata ut pātayati pakṣiṇaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । घ॒ । योषा॑इव । सू॒नरी॑ । उ॒षाः । या॒ति॒ । प्र॒भु॒ञ्ज॒ती । ज॒रय॑न्ती । वृज॑नम् । प॒त्वत् । ई॒य॒ते॒ । उत् । पा॒त॒य॒ति॒ । प॒क्षिणः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:48» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:4» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह क्या करती है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (योषेव) सत्स्त्री के समान (प्रभुंजती) अच्छे प्रकार भोगती (सूनरी) अच्छे प्रकार होती (जरयन्ती) जीर्णावस्था को करती (उषाः) प्रातसमय (पद्वत्) पगों के तुल्य (वृजनम्) मार्ग को (ईयते) प्राप्त होती हुई (याति) जाती और (पक्षिणः) पक्षियों को (उत्पातयति) उड़ाती है उस काल में सबको योगाभ्यास (घ) ही करना चाहिये ॥५॥ सं० भा० के अनुसार अच्छे प्रकार ले जाती। सं०
भावार्थभाषाः - जैसे प्रातःकाल की वेला सब प्रकार से सुख की देनेवाली योगाभ्यास का कारण है उसी प्रकार स्त्रियों को होना चाहिये ॥५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

(आ) समन्तात् (घ) एव (योषेव) यथा स्त्री तथा (सूनरी) या सुष्ठु नयति (उषाः) प्रबोधदात्री (याति) प्राप्नोति (प्रभुंजती) प्रकृष्टं पालनं कुर्वती (जरयन्ती) या जीर्णामवस्थां भावयन्ती (वृजनम्) मार्गम् (पद्वत्) पद्भ्यां तुल्यम् (ईयते) प्राप्नोति (उत्) ऊर्ध्वे (पातयति) जागारयति (पक्षिणः) विहङ्गमान् ॥५॥

अन्वय:

पुनः सा किं करोतीत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - या योषेव प्रभुंजती सूनरी जरयंती उषा पद्वदीयते वृजनं याति पक्षिण उत्पातयति तस्यां सर्वैर्योगो घाभ्यसनीयः ॥५॥
भावार्थभाषाः - यथोषा निर्मला सर्वथा सुखप्रदा योगाभ्यासनिमित्ता भवति तथैव स्त्रीभिर्भवितव्यम् ॥५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जशी प्रातःकाळची वेळ निर्मळ व सर्व प्रकारे सुखी करणारी असून योग्याभ्यासाचे कारण असते तसे स्त्रियांनी असले पाहिजे. ॥ ५ ॥