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वा॒व॒सा॒ना वि॒वस्व॑ति॒ सोम॑स्य पी॒त्या गि॒रा । म॒नु॒ष्वच्छं॑भू॒ आ ग॑तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāvasānā vivasvati somasya pītyā girā | manuṣvac chambhū ā gatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वा॒व॒सा॒ना । वि॒वस्व॑ति । सोम॑स्य । पी॒त्या । गि॒रा । म॒नु॒ष्वत् । श॒म्भू॒ इति॑ शम्भू । आ । ग॒त॒म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:46» मन्त्र:13 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:35» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वावसाना) अत्यन्त सुख में वसाने (शम्भू) सुखों के उत्पन्न करनेवाले पढ़ाने और सत्य के उपदेश करनेहारे ! आप (विवस्वति) सूर्य्य के प्रकाश में (सोमस्य) उत्पन्न हुए जगत् के मध्य में (पीत्या) रक्षा रूपी क्रिया वा (गिरा) वाणी से हमको (मनुष्वत्) रक्षा करनेहारे मनुष्यों के तुल्य (आ) (गतम्) सब प्रकार प्राप्त हूजिये ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम जिस प्रकार परोपकारी मनुष्य प्राणियों के निवास और विद्याप्रकाश के दान से सुखों को प्राप्त कराते हैं वैसे तुम भी उन को प्राप्त कराओ ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(वावसाना) सुखेष्वतिशयेन वस्तारौ। अत्र सुपांसुलुग् इत्याकारादेशः। (विवस्वति) सूर्य्ये (सोमस्य) उत्पन्नस्य जगतो मध्ये (पीत्या) रक्षिकया क्रियया। अत्र पारक्षणइत्यस्मात् क्तिन्# (गिरा) वाण्या (मनुष्वत्) यथा मनुष्या रक्षन्ति तद्वत् (शम्भू) सुखं भावुकौ (आ) समन्तात् (गतम्) प्राप्नुतम् ॥१३॥ #[स्थागापापचो भावे, अ० ३।३।९५ इत्यनेन वा। सं०]

अन्वय:

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे वावसाना शम्भू अध्यापकोपदेशकौ ! युवां विवस्वति सोमस्य पीत्या गिराऽस्मान्मनुष्वदागतम् ॥१३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं यथा परोपकारिणो जनाः प्राणिनां निवासविद्याप्रकाशदानेन सुखानि भावयन्ति तथैव सर्वेभ्यो बहूनि सुखानि संपादयतेति ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही ज्या प्रकारे परोपकारी मनुष्य प्राण्यांकडून निवास व विद्या प्रकाशाच्या दानाने सुख प्राप्त करवून घेता तसे तुम्हीही त्यांना सुख प्राप्त करवून द्या. ॥ १३ ॥