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यः शु॒क्रइ॑व॒ सूर्यो॒ हिर॑ण्यमिव॒ रोच॑ते । श्रेष्ठो॑ दे॒वानां॒ वसुः॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaḥ śukra iva sūryo hiraṇyam iva rocate | śreṣṭho devānāṁ vasuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः । शु॒क्रःइ॑व । सूर्यः॑ । हिर॑ण्यम्इव । रोच॑ते । श्रेष्ठः॑ । दे॒वानाम् । वसुः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:43» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो पूर्व कहा हुआ रुद्र सेनापति (सूर्य्यः शुक्र इव) तेजस्वी शुद्ध भास्कर सूर्य के समान (हिरण्यमिव) सुवर्ण के तुल्य प्रीति कारक (देवानाम्) सब विद्वान् वा पृथिवी आदि के मध्य में (श्रेष्ठः) अत्युत्तम (वसुः) सम्पूर्ण प्राणी मात्र का वसानेवाला (रोचते) प्रीति कारक हो उसको सेना का प्रधान करो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मंत्र में उपमालंकार है। मनुष्यों को उचित है कि जैसा परमेश्वर सब ज्योतियों का ज्योति आनन्दकारियों का आनन्दकारी श्रेष्ठों का श्रेष्ठ विद्वानों का विद्वान् आधारों का आधार है, वैसे ही जो न्यायकारियों में न्यायकारी आनन्द देने वालों में आनन्द देने वाला श्रेष्ठ स्वभाव वालों में श्रेष्ठ स्वभाववाला विद्वानों में विद्वान् और वास हेतुओं का वासहेतु वीर पुरुष हो उसको सभाध्यक्ष मानना चाहिये ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(यः) पूर्वोक्तो रुद्रः (शुक्रइव) यथा तेजस्वी (सूर्य्यः) सविता (हिरण्यमिव) यथा सुवर्ण प्रीतिकरम् (रोचते) रुद्रचिकारी वर्त्तते (श्रेष्ठः) अत्युत्तमः (देवानाम्) सर्वेषां विदुषां पृथिव्यादीनां च मध्ये (वसुः) वसन्ति सर्वाणि भूतानि यस्मिन् सः ॥५॥

अन्वय:

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं यो रुद्रः सभेशः सूर्य्यः शुक्रइव हिरण्यमिव रोचते देवानां श्रेष्ठो वसुरस्ति तं सेनानायकं कुरुत ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालंकारः। मनुष्यैर्यथा परमेश्वरः सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिरानंदिनामानन्दी श्रेष्ठानामुत्तमानामुत्तमो देवानां देवोऽधिकरणानामधिकरणमस्ति। एवं सभाध्यक्षः प्रकाशवत्सु प्रकाशवान् न्यायकारिषु न्यायकारी खल्वानन्दप्रदेष्वानन्दप्रदः श्रेष्ठस्वभावेषु श्रेष्ठस्वभावो विद्वत्सु विद्वान् वासहेतु नां वासहेतु र्भवेदिति वेद्यम् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा परमेश्वर सर्व ज्योतींमध्ये ज्योती, आनंदी असणाऱ्यामध्ये आनंदी, श्रेष्ठांमध्ये श्रेष्ठ, उत्तमात उत्तम, देवांमध्ये देव अधिकरणामध्ये अधिकारण, विद्वानामध्ये विद्वान, आधारामध्ये आधार असतो तसे जो वीर पुरुष न्यायकारी लोकांमध्ये न्यायकारी श्रेष्ठ स्वभावाचा, आनंदी लोकांमध्ये आनंदी, विद्वानांमध्ये विद्वान, पृथ्वीवर संपूर्ण प्राणिमात्रांना बसविणारा असतो. त्याला माणसांनी सभाध्यक्ष मानावे. ॥ ५ ॥