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उप॑ नः॒ सव॒ना ग॑हि॒ सोम॑स्य सोमपाः पिब। गो॒दा इद्रे॒वतो॒ मदः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upa naḥ savanā gahi somasya somapāḥ piba | godā id revato madaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑। नः॒। सव॑ना। आ। ग॒हि॒। सोम॑स्य। सो॒म॒ऽपाः॒। पि॒ब॒। गो॒ऽदाः। इत्। रे॒वतः॑। मदः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:4» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अगले मन्त्र में ईश्वर ने इन्द्र शब्द से सूर्य्य के गुणों का वर्णन किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमपाः) जो सब पदार्थों का रक्षक और (गोदाः) नेत्र के व्यवहार को देनेवाला सूर्य्य अपने प्रकाश से (सोमस्य) उत्पन्न हुए कार्य्यरूप जगत् में (सवना) ऐश्वर्य्ययुक्त पदार्थों के प्रकाश करने को अपनी किरण द्वारा सन्मुख (आगहि) आता है, इसी से यह (नः) हम लोगों तथा (रेवतः) पुरुषार्थ से अच्छे-अच्छे पदार्थों को प्राप्त होनेवाले पुरुष को (मदः) आनन्द बढ़ाता है॥२॥
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार सब जीव सूर्य्य के प्रकाश में अपने-अपने कर्म करने को प्रवृत्त होते हैं, उस प्रकार रात्रि में सुख से नहीं हो सकते॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्रशब्देन सूर्य्य उपदिश्यते।

अन्वय:

यतोऽयं सोमपा गोदा इन्द्रः सूर्य्यः सोमस्य जगतो मध्ये स्वकिरणैः सवना सवनानि प्रकाशयितुमुपागहि उपागच्छति तस्मादेव नोऽस्माकं रेवतः पुरुषार्थिनो जीवस्य च मदो हर्षकरो भवति॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उप) सामीप्ये (नः) अस्माकम् (सवना) ऐश्वर्ययुक्तानि वस्तूनि प्रकाशयितुम्। सु प्रसवैश्वर्य्ययोः इत्यस्माद्धातोर्ल्युट् प्रत्ययः (अष्टा०३.३.११५) शेश्छन्दसि बहुलमिति शेर्लुक्। (आगहि) आगच्छति। शपो लुकि सति वाच्छन्दसीति हेरपित्वादनुदात्तोपदेश०। (अष्टा०६.४.३७) इत्यनुनासिकलोपः लडर्थे लोट् च। (सोमस्य) उत्पन्नस्य कार्य्यभूतस्य जगतो मध्ये (सोमपाः) सर्वपदार्थरक्षकः सन् (पिब) पिबति। अत्र व्यत्ययः लडर्थे लोट् च। (गोदाः) चक्षुरिन्द्रियव्यवहारप्रदः। क्विप् चेति क्विप् प्रत्ययः। गौरिति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.५) जीवो येन रूपं जानाति तस्माच्चक्षुर्गौः। (इत्) एव (रेवतः) पदार्थप्राप्तिमतो जीवस्य। छन्दसीर इति वत्वम्। (मदः) हर्षकरः॥२॥
भावार्थभाषाः - सूर्य्यस्य प्रकाशे सर्वे जीवाः स्वस्य स्वस्य कर्मानुष्ठानाय विशेषतः प्रवर्त्तन्ते नैवं रात्रौ कश्चित्सुखतः कार्य्याणि कर्त्तुं शक्नोतीति॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या प्रकारे सर्व जीव सूर्याच्या प्रकाशात आपापले कर्म करण्यास प्रवृत्त होतात, त्याप्रकारे रात्री तसे कार्य सुखपूर्वक करू शकत नाहीत. ॥ २ ॥