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दिवा॑ चि॒त्तमः॑ कृण्वन्ति प॒र्जन्ये॑नोदवा॒हेन॑ । यत्पृ॑थि॒वीं व्यु॒न्दन्ति॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

divā cit tamaḥ kṛṇvanti parjanyenodavāhena | yat pṛthivīṁ vyundanti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दिवा॑ । चि॒त् । तमः॑ । कृ॒ण्व॒न्ति॒ । प॒र्जन्ये॑न । उ॒द॒वा॒हेन॑ । यत् । पृ॒थि॒वीम् । वि॒उ॒न्दन्ति॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:38» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:16» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे वायु क्या करते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् लोगो ! आप (यत्) जो पवन (उद्वाहेन) जलों को धारण वा प्राप्त करानेवाले (पर्जन्येन) मेघ से (दिवा) दिन में (तमः) अन्धकाररूप रात्रि के (चित्) समान अंधकार (कृण्वन्ति) करते हैं (पृथिवीम्) भूमि को (व्युन्दन्ति) मेघ के जल से आर्द्र करते हैं उनका युक्ति से सेवन करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मंत्र में उपमालङ्कार है। पवन ही जलों के अवयवों को कठिन सघनाकार मेघ को उत्पन्न उस बिजुली में उन मेघों के अवयवों को छिन्न-भिन्न और पृथिवी में गेर कर जलों से स्निग्ध करके अनेक औषधी आदि समूहों को उत्पन्न करते हैं उनका उपदेश विद्वान् लोग अन्य मनुष्यों को सदा किया करें ॥९॥ सं० भा० के अनुसार- कठिन कर, सघनाकार मेघ को उत्पन्न करके फिर बिजली को पैदा कर उस०। सं०
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(दिवा) दिवसे (चित्) इव (तमः) अन्धकाराख्यां रात्रिम् (कृण्वन्ति) कुर्वन्ति (पर्जन्येन) मेघेन (उदवाहेन) य उदकानि वहति तेन। अत्र कर्मण्यण्। अ० ३।२।१। इत्यण् प्रत्ययः। वाच्छन्दसि सर्वे विधयो भवन्तीत्युदकस्योद आदेशः। (यत्) ये (पृथिवीम्) विस्तीर्णां भूमिम् (व्युन्दन्ति) विविधतया क्लेदयन्त्यार्द्रयन्ति ॥९॥

अन्वय:

पुनस्ते वायवः किं कुर्वन्तीत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्या यद्ये वायव उद्वाहेन पर्जन्येन दिवा तमः चित् कृण्वन्ति पृथिवीं व्युन्दन्ति तान्युक्त्योपकुरुत ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। वायव एव जलावयवान् कठिनीकृत्य घनाकारं मेघं† दिवसेप्यंधकारं जनित्वा पुनर्विद्युतमुत्पाद्य तया तान् छित्वा पृथिवीं प्रति निपात्य जलैः स्निग्धां कृत्वानेकानोषध्यादिसमूहान् जनयन्तीति विद्वांसोऽन्यानुपदिशन्तु ॥९॥ †[उत्पाद्य।]
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहेत. वायूच जलाचे अवयव असलेल्या कठीण घनाकार मेघांना उत्पन्न करतात व विद्युतद्वारे त्या मेघाच्या अवयवांना छिन्नभिन्न करून पृथ्वीवर पाडतात आणि जलांनी स्निग्ध करून अनेक औषधी इत्यादी समूह निर्माण करतात. त्यांचा उपदेश विद्वान लोकांनी इतरांना करावा. ॥ ९ ॥