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यद्यू॒यं पृ॑श्निमातरो॒ मर्ता॑सः॒ स्यात॑न । स्तो॒ता वो॑ अ॒मृतः॑ स्यात् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad yūyam pṛśnimātaro martāsaḥ syātana | stotā vo amṛtaḥ syāt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत् । यू॒यम् । पृ॒श्नि॒मा॒त॒रः॒ । मर्ता॑सः । स्यात॑न । स्तो॒ता । वः॒ । अ॒मृतः॑ । स्यात्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:38» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:15» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे राजपुरुष कैसे होने चाहियें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पृश्निमातरः) जिन वायुओं का माता आकाश है उनके सदृश (मर्त्तासः) मरणधर्म युक्त राजा और प्रजा के पुरुषों ! आप पुरुषार्थ युक्त (यत्) जो अपने-२ कामों में (स्यातन) हों तो (वः) तुम्हारी रक्षा करनेवाला सभाध्यक्ष राजा (अमृतः) अमृत सुखयुक्त स्यात् होवें ॥४॥
भावार्थभाषाः - राजा और प्रजा के पुरुषों को उचित है कि आलस्य छोड़ वायु के समान अपने-२ कामों में नियुक्त होवें, जिससे सब का रक्षक सभाध्यक्ष राजा शत्रुओं से मारा नहीं जा सकता+ ॥४॥ +स० भा० के अनुसार सके। सं०
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(यत्) यदि (यूयम्) (पृश्निमातरः) पृश्निराकाशो माता येषां वायूनां त इव (मर्त्तासः) मरणधर्माणो राजप्रजा जनाः। अत्राज्जसेरसुग् इत्यसुगागमः। (स्यातन) भवेत। तस्यतनवादेशः। (स्तोता) स्तुतिकर्त्ता सभाध्यक्षो राजा (वः) युष्माकम् (अमृतः) शत्रुभिरप्रतिहतः (स्यात्) भवेत् ॥४॥

अन्वय:

पुनस्ते कीदृशाः स्युरित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे पृश्निमातर इव वर्त्तमाना मर्त्तासो यूयं यद्यदि पुनषार्थिनः स्यातन तर्हि वः स्तोताऽमृतः स्यात् ॥४॥
भावार्थभाषाः - राजप्रजापुरुषैरालस्यं त्यक्त्वा वायव इव स्वकर्मसु नियुक्तैर्भवितव्यम्। यत एतेषां रक्षकः सभाध्यक्षो राजा शत्रुभिर्हन्तुमशक्यो भवेत् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व प्रजा यांनी आळस सोडून वायूप्रमाणे आपापल्या कामात नियुक्त व्हावे. ज्यामुळे सर्वांचा रक्षक, सभाध्यक्ष राजा शत्रूंकडून मारला जाऊ शकत नाही. ॥ ४ ॥