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मि॒मी॒हि श्लोक॑मा॒स्ये॑ प॒र्जन्य॑इव ततनः । गाय॑ गाय॒त्रमु॒क्थ्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mimīhi ślokam āsye parjanya iva tatanaḥ | gāya gāyatram ukthyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मि॒मी॒हि । श्लोक॑म् । आ॒स्ये॑ । प॒र्जन्यः॑इव । त॒त॒नः॒ । गाय॑ । गा॒य॒त्रम् । उ॒क्थ्य॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:38» मन्त्र:14 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उस विद्वान् का पढ़ाया शिष्य कैसा होना चाहिये, इसका उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् मनुष्य ! तू (आस्ये) अपने मुख में (श्लोकम्) वेद की शिक्षा से युक्त वाणी को (मिमीहि) निर्माण कर और उस वाणी को (पर्जन्य इव) जैसे मेघ वृष्टि करता है वैसे (ततनः) फैला और (उक्थ्यम्) कहने योग्य (गायत्रम्) गायत्री छन्दवाले स्तोत्ररूप वैदिक सूक्तों को (गाय) पढ़ तथा पढ़ा ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मंत्र में उपमालङ्कार है। हे विद्वानों से विद्या पढ़े हुए मनुष्यों ! तुम लोगों को उचित है कि सब प्रकार प्रयत्न के साथ वेद विद्या से शिक्षा की हुई वेदवाणी से वाणी के वेत्ता के समान वक्ता होकर वायु आदि पदार्थों के गुणों की स्तुति तथा उपदेश किया करो ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(मिमीहि) निर्मिमीहि। माङ्माने शब्देचेत्यस्य रूपम् व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (श्लोकम्) वेदशिक्षायुक्तां वाणीम्। श्लोक इति वाङ्नामसु पठितम्। निघं० १।११। (आस्ये) मुखे (पर्जन्य इव) यथा मेघो गर्जनं कुर्वन्वृष्टिं तनोति (ततनः) विस्तारय। लेटि मध्यमैकवचने तनु विस्तार इत्यस्य रूपम्। विकरणव्यत्ययेन ओः श्लुः। (गाय) पठ पाठय वा (गायत्रम्) गायत्रीछन्दस्कम् (उक्थ्यम्) गातुं वक्तुं योग्यम् ॥१४॥

अन्वय:

पुनस्तत्पाठितो विद्यार्थी कीदृशो भवेदित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् मनुष्य त्वमास्य श्लोकं मिमीहि तं च पर्जन्य इव ततनः। उक्थ्यं गायत्रं च गाय ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे विद्वद्भ्योधीतविद्या मनुष्या युष्माभिः सर्वथा प्रयत्नेन स्वकीयां वाणीं वेदविद्यासुशिक्षितां कृत्वा वाचस्पत्यं संपाद्य परमेश्वरस्य वाय्वादीनां च गुणाः स्तोतव्याः श्रोतव्या उपदेशनीयाश्च ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे विद्वानांकडून विद्या विदित करणाऱ्या माणसांनो! तुम्ही प्रयत्नपूर्वक वेदविद्येद्वारे सुशिक्षित व वाचस्पती बनून वायू इत्यादी पदार्थांच्या गुणांची स्तुती व उपदेश करा. ॥ १४ ॥