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अध॑ स्व॒नान्म॒रुतां॒ विश्व॒मा सद्म॒ पार्थि॑वम् । अरे॑जन्त॒ प्र मानु॑षाः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adha svanān marutāṁ viśvam ā sadma pārthivam | arejanta pra mānuṣāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अध॑ । स्व॒नात् । म॒रुताम् । विश्व॑म् । आ । सद्म॑ । पार्थि॑वम् । अरे॑जन्त । प्र । मानु॑षाः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:38» मन्त्र:10 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:16» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर इन पवनों के योग से क्या होता है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मानुषाः) मननशील मनुष्यो ! तुम जिन (मरुताम्) पवनों के (स्वनात्) उत्पन्न शब्द के होने से (अध) अनन्तर (विश्वम्) सब (पार्थिवम्) पृथिवी में विदित वस्तुमात्र का (सद्म) स्थान कंपता और प्राणिमात्र (अरेजन्त) अच्छे प्रकार कंपित होते हैं इस प्रकार जानो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे ज्योतिष्य शास्त्र के विद्वान लोगो ! आप पवनों के योग ही के सब मूर्त्तिमान् द्रव्य चेष्टा को प्राप्त होते प्राणी लोग बिजुली के भयंकर शब्द में भय को प्राप्त होकर कंपित होते और भूगोल आदि प्रतिक्षण भ्रमण किया करते हैं ऐसा निश्चित समझों ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(अध) आनन्तर्ये। वर्णव्यत्ययेन थस्य धः। (स्वनात्) उत्पन्नाच्छब्दात् (मरुताम्) वायूनां विद्युतश्च सकाशात् (विश्वम्) सर्वम् (आ) समन्तात् (सद्म) सीदन्ति यस्मिन् गृहे तत्। सद्मेति गृहनामसु पठितम्। निघं० ३।४। (पार्थिवम्) पृथिव्यां विदितं वस्तु (अरेजन्त) कम्पन्ते रेजृकंपन अस्माद्धातोर्लडर्थे लङ्। (प्र) प्रगतार्थे (मानुषाः) मानवाः ॥१०॥

अन्वय:

पुनरेतेषां योगेन किं भवतीत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मानुषा यूयं येषां मरुतां स्वनादध विश्वं पार्थिवं सद्म कम्पते प्राणिनः प्रारेजन्त प्रकम्पन्ते चलन्तीति तान् विजानीत ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे ज्योतिर्विदो विपश्चितो भवन्तो मरुतां योगेनैव सर्वं मर्तिमद्द्रव्यं चेष्टते प्राणिनो भयंकराद्विद्युच्छब्दाद्भीत्वा कम्पते पृथिव्यादिकं प्रतिक्षणं भ्रमतीति निश्चिन्वन्तु ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे ज्योतिष्यशास्त्रज्ञांनो! वायूच्या योगाने सर्व मूर्तिमान द्रव्य हालचाल करतात. प्राणी विद्युतच्या गर्जनेने भयभीत होतात व भूगोल इत्यादी प्रतिक्षण भ्रमण करतात, असे निश्चित समजा. ॥ १० ॥