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यच्चि॒द्धि त्वं गृ॒हेगृ॑ह॒ उलू॑खलक यु॒ज्यसे॑। इ॒ह द्यु॒मत्त॑मं वद॒ जय॑तामिव दुन्दु॒भिः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yac cid dhi tvaṁ gṛhe-gṛha ulūkhalaka yujyase | iha dyumattamaṁ vada jayatām iva dundubhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। चि॒त्। हि। त्वम्। गृ॒हेऽगृ॑हे। उलू॑खलक। यु॒ज्यसे॑। इ॒ह। द्यु॒मत्ऽत॑मम्। व॒द॒। जय॑ताम्ऽइव। दु॒न्दु॒भिः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:28» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:25» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उक्त उलूखल से क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (उलूखलक) उलूखल से व्यवहार लेनेवाले विद्वान् ! तू (यत्) जिस कारण (हि) प्रसिद्ध (गृहेगृहे) घर-घर में (युज्यसे) उक्त विद्या का व्यवहार वर्त्तता है (इह) इस संसार गृह वा स्थान में (जयताम्) शत्रुओं को जीतनेवालों के (दुन्दुभिः) नगाड़ों के (इव) समान (द्युमत्तमम्) जिसमें अच्छे शब्द निकले, वैसे उलूखल के व्यवहार की (वद) विद्या का उपदेश करें॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। सब घरों में उलूखल और मुसल को स्थापन करना चाहिये, जैसे शत्रुओं के जीतनेवाले शूरवीर मनुष्य अपने नगाड़ों को बजा कर युद्ध करते हैं, वैसे ही रस चाहनेवाले मनुष्यों को उलूखल में यव आदि ओषधियों को डालकर मुसल से कूटकर भूसा आदि दूर करके सार-सार लेना चाहिये॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

तेनोलूखलेन किं कर्त्तव्यमित्युपदिश्यते॥

अन्वय:

हे उलूखलक ! विद्वँस्त्वं यद्धि गृहेगृहे युज्यसे तद्विद्यां समादधासि, स त्वमिह जयतां दुन्दुभिरिव द्युमत्तममुलूखलं वादयैतद्विद्यां (चित्) वदोपदिश॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यस्मात् (चित्) चार्थे (हि) प्रसिद्धौ (गृहेगृहे) प्रतिगृहम् वीप्सायां द्वित्वं (उलूखलक) उलूखलं कायति शब्दयति यस्तत्सम्बुद्धौ विद्वन् (युज्यसे) समादधासि (इह) अस्मिन्संसारे गृहे स्थाने वा (द्युमत्तमम्) प्रशस्तः प्रकाशो विद्यते यस्मिन् स शब्दो द्युमान् अतिशयेन द्युमान् द्युमत्तमस्तम्। अत्र प्रशंसार्थे मतुप्। (वद) वादय वा। अत्र पक्षेऽन्तर्गतो ण्यर्थः। (जयतामिव) विजयकरणशीलानां वीराणामिव (दुन्दुभिः) वादित्रविशेषैः॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। सर्वेषु गृहेषूलूखलक्रिया योजनीया यथा भवति शत्रूणां विजेतारः सेनास्थाः शूरा दुन्दुभिः वादयित्वा युध्यन्ते, यथैव रससम्पादकेन मनुष्येणोलूखले यवाद्योषधीर्योजयित्वा मुसलेन हत्वा तुषादिकं निवार्य्य सारांशः संग्राह्य इति॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. सर्व घरात उलूखल (उखळ व मुसळ) असले पाहिजे. जशी शत्रूंना जिंकणारी शूरवीर माणसे आपले नगारे वाजवून युद्ध करतात तसे रस प्राप्त करू इच्छिणाऱ्या माणसांनी उखळात जव इत्यादी औषधी घालून मुसळाने कुटून भुसा इत्यादी दूर करून मूळ पदार्थ (सार) घेतले पाहिजे. ॥ ५ ॥