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नकि॑रस्य सहन्त्य पर्ये॒ता कय॑स्य चित्। वाजो॑ अस्ति श्र॒वाय्यः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nakir asya sahantya paryetā kayasya cit | vājo asti śravāyyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नकिः॑। अ॒स्य॒। स॒ह॒न्त्य॒। प॒रि॒ऽए॒ता। कय॑स्य। चि॒त्। वाजः॑। अ॒स्ति॒। श्र॒वाय्यः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:27» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहन्त्य) सहनशील विद्वान् ! (नकिः) जो धर्म की मर्यादा उल्लङ्घन न करने और (पर्येता) सब पर पूर्ण कृपा करनेवाले आप (यस्य) जिस (कयस्य) युद्ध करने और शत्रुओं को जीतनेवाले शूरवीर पुरुष का (श्रवाय्यः) श्रवण करने योग्य (वाजः) युद्ध करना (अस्ति) होता है, उसको सब उत्तम पदार्थ सदा दिया कीजिये, इस प्रकार आप का नियोग हम लोग करते हैं॥८॥
भावार्थभाषाः - जैसे कोई भी जीव जिस अनन्त शुभ गुणयुक्त परिमाण सहित सब से उत्तम परमेश्वर के गुणों की न्यूनता वा उसका परिमाण करने को योग्य नहीं हो सकता, जिसका सब ज्ञान निर्भ्रम है, वैसे जो मनुष्य वर्त्तता है, वही सब राजकार्यों का स्वामी नियत करना चाहिये॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सः कीदृश इत्युपदिश्यते॥

अन्वय:

हे सहन्त्य सहनशील विद्वन्नकिः पर्येता त्वं यस्यास्य कयस्य धर्मात्मनो वीरस्य श्रवाय्यो वाजोऽस्ति, तस्मै सर्वमभीष्टं पदार्थं दद्या इति नियोज्यते भवानस्माभिः॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नकिः) धर्ममर्यादा या नाक्रमिता। नकिरिति सर्वसमानीयेषु पठितम्। (निघं०३.१२) अनेन क्रमणनिषेधार्थो गृह्यते (अस्य) सेनाध्यक्षस्य (सहन्त्य) सहनशील विद्वन् (पर्येता) सर्वतोऽनुग्रहीता (कयस्य) चिकेति जानाति योद्धुं शत्रून् पराजेतुं यः स कयस्तस्य। अत्र सायणाचार्येण यकारोपजनश्छान्दस इति भ्रमादेवोक्तम्। (चित्) एव (वाजः) संग्रामः (अस्ति) भवति (श्रवाय्यः) श्रोतुमर्हः। अत्र श्रुदक्षिस्पृहि० (उणा०३.९४) अनेनाय्य प्रत्ययः॥८॥
भावार्थभाषाः - यथा नैव कश्चिद् विद्वानप्यनन्तशुभगुणस्याप्रमेयस्याक्रमितव्यस्य परमेश्वरस्य क्रमणं परिमाणं कर्त्तुमर्हति यस्य सर्वं विज्ञानं निर्भ्रान्तमस्ति, तथैव येनैवं प्रवृत्त्यते स एव सर्वैर्मनुष्यै राजकार्य्याधिपतिः स्थापनीयः॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे कोणताही जीव ज्या अनन्त शुभगुणयुक्त परिमाणांसहित सर्वांत उत्तम परमेश्वराच्या गुणांचे परिमाण काढू शकत नाही, ज्याचे सर्व ज्ञान निर्भ्रम आहे असे जाणून तो माणूस वागतो त्याला राजकार्याचा स्वामी नेमले पाहिजे. ॥ ८ ॥