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आ नो॑ भज पर॒मेष्वा वाजे॑षु मध्य॒मेषु॑। शिक्षा॒ वस्वो॒ अन्त॑मस्य॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no bhaja parameṣv ā vājeṣu madhyameṣu | śikṣā vasvo antamasya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॑। भ॒ज॒। प॒र॒मेषु॑। आ। वाजे॑षु। म॒ध्य॒मेषु॑। शिक्षा॑। वस्वः॑। अन्त॑मस्य॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:27» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों के प्रति विद्वानों को कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् मनुष्य (परमेषु) उत्तम (मध्यमेषु) मध्यम आनन्द के देनेवाले वा (वाजेषु) सुख प्राप्तिमय युद्धों वा उत्तम अन्नादि में (अन्तमस्य) जिस प्रत्यक्ष सुख मिलनेवाले संग्राम के बीच में (नः) हम लोगों को (आशिक्ष) सब विद्याओं की शिक्षा कीजिये, इसी प्रकार हम लोगों के (वस्वः) धन आदि उत्तम-उत्तम पदार्थों का (आभज) अच्छे प्रकार स्वीकार कीजिये॥५॥
भावार्थभाषाः - इस प्रकार जिन धार्मिक पुरुषार्थी पुरुषों से सेवन किया हुआ विद्वान् सब विद्याओं को प्राप्त कराके उनको सुख युक्त करे तथा इस जगत् में उत्तम, मध्यम और निकृष्ट भेद से तीन प्रकार के भोगलोक और मनुष्य हैं, इन को यथा बुद्धि विद्या देता रहे॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यान् प्रति विदुषा कथं वर्त्तितव्यमित्युपदिश्यते॥

अन्वय:

हे विद्वंस्त्वं परमेषु मध्यमेषु वाजेषु वान्तमस्य मध्ये नोऽस्मान् सर्वा विद्या आशिक्षैवं नोऽस्मान् वस्वो वसून्याभज समन्तात्सेवस्व॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (नः) अस्मान् (भज) सेवस्व (परमेषु) उत्कृष्टेषु (आ) अभ्यर्थे (वाजेषु) सुखप्राप्तिमयेषु युद्धेषूत्तमेष्वन्नादिषु वा (मध्यमेषु) मध्यमसुखविशिष्टेषु (शिक्ष) सर्वा विद्या उपदिशेः। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वस्वः) सुखपूर्वकं वसन्ति यैस्तानि वसूनि द्रव्याणि (अन्तमस्य) सर्वेषां दुःखानामन्तं मिमीते येन युद्धेन तस्य मध्ये॥५॥
भावार्थभाषाः - एवं यैर्धामिकैः पुरुषार्थिभिर्मनुष्यैः सेवितः सन् विद्वान् सर्वा विद्याः प्राप्य तान् सुखिनः कुर्य्यात्। अस्मिन् जगत्युत्तममध्यमनिकृष्टभेदेन त्रिविधा भोगा लोका मनुष्याश्च सन्त्येतेषु यथाबुद्धि जनान् विद्यां दद्यात्॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - धार्मिक पुरुषार्थी पुरुषांकडून स्वीकारला गेलेला विद्वान सर्व विद्या प्राप्त करून त्यांना सुखी करतो, तसेच या जगात उत्तम, मध्यम व निकृष्ट भेदामुळे तीन प्रकारचे भोग, लोक व माणसे आहेत, त्यांना यथाबुद्धी विद्या देत राहावे. ॥ ५ ॥