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इ॒ममू॒ षु त्वम॒स्माकं॑ स॒निं गा॑य॒त्रं नव्यां॑सम्। अग्ने॑ दे॒वेषु॒ प्र वो॑चः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imam ū ṣu tvam asmākaṁ saniṁ gāyatraṁ navyāṁsam | agne deveṣu pra vocaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒मम्। ऊँ॒ इति॑। सु। त्वम्। अ॒स्माक॑म्। स॒निम्। गा॒य॒त्रम्। नव्यां॑सम्। अग्ने॑। दे॒वेषु॑। प्र। वो॒चः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:27» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में अग्नि शब्द से ईश्वर का प्रकाश किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अनन्त विद्यामय जगदीश्वर (त्वम्) सब विद्याओं का उपदेश करने और सब मङ्गलों के देनेवाले आप जैसे सृष्टि की आदि में (देवेषु) पुण्यात्मा अग्नि वायु आदित्य अङ्गिरा नामक मनुष्यों के आत्माओं में (नव्यांसम्) नवीन-नवीन बोध करानेवाला (गायत्रम्) गायत्री आदि छन्दों से युक्त (सुसनिम्) जिन में सब प्राणी सुखों का सेवन करते हैं, उन चारों वेदों का (प्रवोचः) उपदेश किया और अगले कल्प-कल्पादि में फिर भी करोगे, वैसे उसको (उ) विविध प्रकार से (अस्माकम्) हमारे आत्माओं में (सु) अच्छे प्रकार कीजिये॥४॥
भावार्थभाषाः - हे जगदीश्वर ! आप ने जैसे ब्रह्मा आदि महर्षि धार्मिक विद्वानों के आत्माओं में वेद द्वारा सत्य बोध का प्रकाश कर उनको उत्तम सुख दिया, वैसे ही हम लोगों के आत्माओं में बोध प्रकाशित कीजिये, जिससे हम लोग विद्वान् होकर उत्तम-उत्तम धर्मकार्यों का सदा सेवन करते रहें॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निशब्देनेश्वर उपदिश्यते॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वं यथा देवेषु नव्यांसं गायत्रं सुसनिं प्रवोचस्तथेममु इति वितर्केऽस्माकमात्मसु प्रवग्धि॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इमम्) वक्ष्यमाणम् (ऊ) वितर्के अत्र निपातस्य च इति दीर्घः। (सु) शोभने (त्वम्) सर्वमङ्गलप्रदातेश्वरः (अस्माकम्) मनुष्याणाम् (सनिम्) सनन्ति सम्भजन्ति सुखानि यस्मिन् व्यवहारे तम्। अत्र ‘सन’ धातोः। खनिकृष्यज्यसिवसिवनिसनि० (उणा०४.१४५) अनेनाऽधिकरण ‘इः’ प्रत्ययः। (गायत्रम्) गायत्रीप्रगाथा येषु चतुर्षु वेदेषु तं वेदचतुष्टयम् (नव्यांसम्) अतिशयेन नवो नवीनो बोधो यस्मात्तम्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वा इत्यनेनेकारलोपश्च। (अग्ने) अनन्तविद्यामय जगदीश्वर ! (देवेषु) सुष्ट्यादौ पुण्यात्मसु जातेष्वग्निवाय्वादित्याङ्गिरस्सु मनुष्येषु (प्र) प्रकृष्टार्थे क्रियायोगे (वोचः) प्रोक्तवान्। अत्र ‘वच’ धातोर्वर्त्तमाने लुङडभावश्च॥४॥
भावार्थभाषाः - हे जगदीश्वर ! भवान् यथा ब्रह्मादीनां महर्षीणां धार्मिकाणां विदुषामात्मसु सत्यं बोधं प्रकाश्य परमं सुखं दत्तवान्, तथैवास्माकमात्मसु तादृशमेव प्रकाशय यतो वयं विद्वांसो भूत्वा श्रेष्ठानि धर्म्मकार्य्याणि सदैव कुर्य्यामेति॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे जगदीश्वरा! तू जसे ब्रह्मा इत्यादी महर्षी धार्मिक विद्वानांच्या आत्म्यांत वेदाद्वारे सत्यबोधाचा प्रकाश करून त्यांना उत्तम सुख दिलेस तसेच आमच्या आत्म्यात बोध कर. ज्यामुळे आम्ही विद्वान बनून उत्तम धर्मकार्य सदैव करावे. ॥ ४ ॥