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स नो॑ दू॒राच्चा॒साच्च॒ नि मर्त्या॑दघा॒योः। पा॒हि सद॒मिद्वि॒श्वायुः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa no dūrāc cāsāc ca ni martyād aghāyoḥ | pāhi sadam id viśvāyuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॒। दू॒रात्। च॒। आ॒सात्। च॒। नि। मर्त्या॑त्। अ॒घ॒ऽयोः। पा॒हि। सद॑म्। इत्। वि॒श्वऽआ॑युः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:27» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वायुः) जिससे कि समस्त आयु सुख से प्राप्त होती है (सः) वह जगदीश्वर वा भौतिक अग्नि (अघायोः) जो पाप करना चाहते हैं, उन (मर्त्त्यात्) शत्रुजनों से (दूरात्) दूर वा (आसात्) समीप से (नः) हम लोगों की वा हम लोगों के (सदः) सब सुख रहनेवाले शिल्पव्यवहार वा देहादिकों की (नि) (पाहि) निरन्तर रक्षा करता है॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों से उपासना किया हुआ ईश्वर वा सम्यक् सेवित विद्वान् युद्ध में शत्रुओं से रक्षा करनेवाला वा रक्षा का हेतु होकर शरीर आदि वा विमानादि की रक्षा करके हम लोगों के लिये सब आयु देता है॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

स विश्वायुरघायोः शत्रोर्मर्त्त्याद् दूरादासाच्च नोऽस्मानस्माकं सदं च निपाहि सततं रक्षति॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) जगदीश्वरो विद्वान् वा (नः) अस्मानस्माकं वा (दूरात्) विप्रकृष्टात् (च) समुच्चये (आसात्) समीपात् (च) पुनरर्थे (नि) नितराम् (मर्त्यात्) मनुष्यात् (अघायोः) आत्मनोऽघमिच्छतः शत्रोः (पाहि) रक्ष (सदम्) सीदन्ति सुखानि यस्मिंस्तं शिल्पव्यवहारं देहादिकं वा (इत्) एव (विश्वायुः) विश्वं सम्पूर्णमायुर्यस्मात् सः॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। मनुष्यैरुपासित ईश्वरः संसेवितो विद्वान् वा युद्धे शत्रूणां सकाशाद् रक्षको रक्षाहेतुर्भूत्वा शरीरादिकं विमानादिकं च संरक्ष्यास्मभ्यं सर्वमायुः सम्पादयति॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी उपासना केलेला ईश्वर व सम्यक सेवित विद्वान युद्धात शत्रूंपासून रक्षण करून व रक्षणाचे कारण बनून शरीर इत्यादी व विमान इत्यादीचे रक्षण करून आम्हाला आयुष्य देतो. ॥ ३ ॥