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आ नो॑ ब॒र्ही रि॒शाद॑सो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा। सीद॑न्तु॒ मनु॑षो यथा॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no barhī riśādaso varuṇo mitro aryamā | sīdantu manuṣo yathā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। ब॒र्हिः। रि॒शाद॑सः। वरु॑णः। मि॒त्रः। अ॒र्य॒मा। सीद॑न्तु। मनु॑षः। य॒था॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:26» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे वर्त्तें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यथा) जैसे (रिशादसः) दुष्टों के मारनेवाले (वरुणः) सब विद्याओं में श्रेष्ठ (मित्रः) सबका सुहृद् (अर्यमा) न्यायकारी (मनुषः) सभ्य मनुष्य (नः) हम लोगों के (बर्हिः) सब सुख के देनेवाले आसन में बैठते हैं, वैसे आप भी बैठिये॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सभ्यतापूर्वक सभाचतुर मनुष्य सभा में वर्त्तें, वैसे ही सब मनुष्यों को सब दिन वर्त्तना चाहिये॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते कथं वर्त्तेरन्नित्युपदिश्यते॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा रिशादसो दुष्टहिंसकाः सभ्या वरुणो मित्रोऽर्यमा मनुषो नो बर्हिः सीदन्ति तथा भवन्तोऽपि सीदन्तु॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (नः) अस्माकं (बर्हिः) सर्वसुखप्रापकमासनम्। बर्हिरिति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.२) (रिशादसः) रिशानां हिंसकानां रोगाणां वा अदस उपक्षयितारः (वरुणः) सकलविद्यासु वरः (मित्रः) सर्वसुहृत् (अर्यमा) न्यायाधीशः (सीदन्तु) समासताम् (मनुषः) जानन्ति ये सभ्या मर्त्यास्ते। अत्र मनधातार्बाहुलकादौणादिक उसिः प्रत्ययः। (यथा) येन प्रकारेण॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सभ्यतया सभाचतुराः सभायां वर्त्तेरंस्तथा सर्वैर्मनुष्यैः सदा वर्त्तितव्यमिति॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. सभाचतुर माणसे सभेत जशी वागतात तसेच सर्व माणसांनी सदैव वागावे. ॥ ४ ॥