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क॒दा क्ष॑त्र॒श्रियं॒ नर॒मा वरु॑णं करामहे। मृ॒ळी॒कायो॑रु॒चक्ष॑सम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kadā kṣatraśriyaṁ naram ā varuṇaṁ karāmahe | mṛḻīkāyorucakṣasam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒दा। क्ष॒त्र॒ऽश्रिय॑म्। नर॑म्। आ। वरु॑णम्। क॒रा॒म॒हे॒। मृ॒ळी॒काय॑। उ॒रु॒ऽचक्ष॑सम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:16» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह वरुण कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (कदा) कब (मृळीकाय) अत्यन्त सुख के लिये (उरुचक्षसम्) जिसको वेद अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं और (नरम्) सबको सन्मार्ग पर चलानेवाले उस (वरुणम्) परमेश्वर को सेवन करके (क्षत्रश्रियम्) चक्रवर्त्ति राज्य की लक्ष्मी को (करामहे) अच्छे प्रकार सिद्ध करें॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वर की आज्ञा का यथावत् पालन करके सब सुख और चक्रवर्त्ति राज्य न्याय के साथ सदा सेवन करने चाहियें॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स वरुणः कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते॥

अन्वय:

वयं कदा मृळीकायोरुचक्षसं नरं वरुणं परमेश्वरं संसेव्य क्षत्रश्रियं करामहे॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कदा) कस्मिन्काले (क्षत्रश्रियम्) चक्रवर्त्तिराजलक्ष्मीम् (नरम्) नयनकर्त्तारम् (आ) समन्तात् (वरुणम्) परमेश्वरम् (करामहे) कुर्य्याम (मृळीकाय) सुखाय (उरुचक्षसम्) बहुविधं वेदद्वारा चक्ष आख्यानं यस्य तम्॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः परमेश्वराज्ञां यथावत् पालयित्वा सर्वसुखं चक्रवर्त्तिराज्यं न्यायेन सदा सेवनीयमिति॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी परमेश्वराच्या आज्ञेचे यथावत पालन करून सदैव न्यायाने सर्व सुख व चक्रवर्ती राज्य भोगावे. ॥ ५ ॥