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दर्शं॒ नु वि॒श्वद॑र्शतं॒ दर्शं॒ रथ॒मधि॒ क्षमि॑। ए॒ता जु॑षत मे॒ गिरः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

darśaṁ nu viśvadarśataṁ darśaṁ ratham adhi kṣami | etā juṣata me giraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दर्श॑म्। नु। वि॒श्वऽद॑र्शतम्। दर्श॑म्। रथ॑म्। अधि॑। क्षमि॑। ए॒ताः। जु॒ष॒त॒। मे॒। गिरः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:18 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:18


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वे क्या-क्या करें, इस विषय का प्रकाश अगले मन्त्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम (अधिक्षमि) जिन व्यवहारों में उत्तम और निकृष्ट बातों का सहना होता है, उनमें ठहर कर (विश्वदर्शतम्) जो कि विद्वानों की ज्ञानदृष्टि से देखने के योग्य परमेश्वर है उसको (दर्शम्) बारंबार देखने (रथम्) विमान आदि यानों को (नु) भी (दर्शम्) पुनः-पुनः देख के सिद्ध करने के लिये (मे) मेरी (गिरः) वाणियों को (जुषत) सदा सेवन करो॥१८॥
भावार्थभाषाः - जिससे क्षमा आदि गुणों से युक्त मनुष्यों को यह जानना योग्य है कि प्रश्न और उत्तर के व्यवहार के किये विना परमेश्वर को जानने और शिल्पविद्या सिद्ध विमानादि रथों को कभी बनाने को शक्य नहीं और जो उनमें गुण हैं, वे भी इससे इनके विज्ञान होने के लिये सदैव प्रयत्न करना चाहिये॥१८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते किं किं कुर्युरित्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे मनुष्या ! यूयमधि क्षमि स्थित्वा विश्वदर्शतं वरुणं परेशं दर्शं रथं नु दर्शं मे ममैता गिरो वाणीर्जुषत नित्यं सेवध्वम्॥१८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दर्शम्) पुनः पुनर्द्रष्टुम् (नु) अनुपृष्टे (विश्वदर्शतम्) सर्वैर्विद्वद्भिर्द्रष्टव्यं जगदीश्वरम् (दर्शम्) पुनः पुनः सम्प्रेक्षितुम् (रथम्) रमणीयं विमानादियानम् (अधि) उपरिभावे (क्षमि) क्षाम्यन्ति सहन्ते जना यस्मिन् व्यवहारे तस्मिन् स्थित्वा। अत्र कृतो बहुलम् इत्यधिकरणे क्विप्। वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति अनुनासिकस्य क्विझलोः क्ङिति। (अष्टा०६.४.१५) इति दीर्घो न भवति (एताः) वेदविद्यासुशिक्षासंस्कृताः (जुषत) सेवध्वम् (मे) मम (गिरः) वाणीः॥१८॥
भावार्थभाषाः - यस्मात् क्षमादिगुणसहितैर्मनुष्यैः प्रश्नोत्तरव्यवहारेणानुष्ठानेन विनेश्वरं शिल्पविद्यासिद्धानि यानानि च वेदितुं न शक्यानि, तत्र ये गुणास्तेऽपि चास्मादेतेषां विज्ञानाय सर्वदा प्रयतितव्यम्॥१८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - क्षमा इत्यादी गुणांनी युक्त माणसांनी हे जाणावे की, प्रश्न व उत्तराचा व्यवहार केल्याशिवाय परमेश्वराला जाणणे व शिल्पविद्या सिद्ध विमान इत्यादी रथांना तयार करणे कधी शक्य होणार नाही. ज्यांच्यात हे गुण आहेत, त्यांनी हे ज्ञान मिळविण्यासाठी सदैव प्रयत्न केले पाहिजेत. ॥ १८ ॥