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न यं दिप्स॑न्ति दि॒प्सवो॒ न द्रुह्वा॑णो॒ जना॑नाम्। न दे॒वम॒भिमा॑तयः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na yaṁ dipsanti dipsavo na druhvāṇo janānām | na devam abhimātayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। यम्। दिप्स॑न्ति। दि॒प्सवः। न। द्रुह्वा॑णः। जना॑नाम्। न। दे॒वम्। अ॒भिऽमा॑तयः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:25» मन्त्र:14 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह वरुण किस प्रकार का है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम सब लोग (जनानाम्) विद्वान् धार्मिक वा मनुष्य आदि प्राणियों से (दिप्सवः) झूठे अभिमान और झूठे व्यवहार को चाहनेवाले शत्रुजन (यम्) जिस (देवम्) दिव्य गुणवाले परमेश्वर वा विद्वान् को (न) (दिप्सन्ति) विरोध से न चाहें (द्रुह्वाणः) द्रोह करनेवाले जिस को द्रोह से (न) चाहें तथा जिसके साथ (अभिमातयः) अभिमानी पुरुष (न) अभिमान से न वर्त्तें, उन उपासना करने योग्य परमेश्वर वा विद्वानों को जानो॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जो हिंसक परद्रोही अभिमानयुक्त जन हैं, वे अज्ञानपन से परमेश्वर वा विद्वानों के गुणों को जान कर उनसे उपकार लेने को समर्थ नहीं हो सकते। इसलिये सब मनुष्यों को योग्य है कि उनके गुण, कर्म और स्वभाव का सदैव ग्रहण करें॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यूयं जनानां दिप्सवो यं न दिप्सन्ति द्रुह्वाणो यं न द्रुह्यन्त्यभिमातयो यं नाभिमन्यन्ते तं परमेश्वरं देवमुपास्यं कार्य्यहेतुं विद्वांसं वा सर्वे जानीत॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) निषेधे (यम्) वरुणं परमेश्वरं विद्वांसं वा (दिप्सन्ति) विरोद्धुमिच्छन्ति। (दिप्सवः) मिथ्याभिमानव्यवहारमिच्छवः शत्रवः। अत्रोभयत्र वर्णव्यत्ययेन धकारस्य दकारः। (न) प्रतिषेधे (द्रुह्वाणः) द्रोहकर्त्तारः (न) निवारणे (देवम्) दिव्यगुणं (अभिमातयः) अभिमानिनः। ‘मा माने’ इत्यस्य रूपम्॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। ये हिंसका परद्रोहयुक्ता अभिमानसहिता जना वर्त्तन्ते, ते विद्याहीनत्वात् परमेश्वरस्य विदुषां वा गुणान् ज्ञात्वा नैवोपकर्त्तुमर्हन्ति, तस्मात् सर्वैरेतेषां गुणकर्मस्वभावैः सह सदा भवितव्यम्॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जे हिंसक, परद्रोही, अभिमानी लोक आहेत ते अज्ञानामुळे परमेश्वर किंवा विद्वानांच्या गुणांना जाणू शकत नाहीत व त्यांच्याकडून उपकार घेण्यास समर्थ होऊ शकत नाहीत. त्यासाठी सर्व माणसांनी त्यांचे गुण कर्म स्वभाव जाणून त्यांचे ग्रहण करावे. ॥ १४ ॥