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यश्चि॒द्धि त॑ इ॒त्था भगः॑ शशमा॒नः पु॒रा नि॒दः। अ॒द्वे॒षो हस्त॑योर्द॒धे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaś cid dhi ta itthā bhagaḥ śaśamānaḥ purā nidaḥ | adveṣo hastayor dadhe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। चि॒त्। हि। ते॒। इ॒त्था। भगः॑। श॒श॒मा॒नः। पु॒रा। नि॒दः। अ॒द्वे॒षः। हस्त॑योः। द॒धे॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:24» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी अगले मन्त्र में परमेश्वर ने अपना ही प्रकाश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे जीव ! जैसे (अद्वेषः) सब से मित्रतापूर्वक वर्तनेवाला द्वेषादि दोषरहित मैं ईश्वर (इत्था) इस प्रकार सुख के लिये (यः) जो (शशमानः) स्तुति (भगः) और स्वीकार करने योग्य धन है, उसको (ते) तेरे धर्मात्मा के लिये (हि) निश्चय करके (हस्तयोः) हाथों में आमले का फल वैसे धर्म के साथ प्रशंसनीय धन को (दधे) धारण करता हूँ और जो (निदः) सब की निन्दा करनेहारा है, उसके लिये उस धनसमूह का विनाश कर देता हूँ, वैसे तुम लोग भी किया करो॥४॥
भावार्थभाषाः - यहाँ वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे मैं ईश्वर सब के निन्दक मनुष्य के लिये दुःख और स्तुति करनेवाले के लिये सुख देता हूँ, वैसे तुम भी सदा किया करो॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स एवार्थ उपदिश्यते।

अन्वय:

हे जीव ! यथाऽद्वेषोहमीश्वर इत्था सुखहेतुना यः शशमानो भगोऽस्ति, तं सुकर्मणस्ते हस्तयोरामलकमिव दधे, यश्च निदोऽस्ति तस्य हस्तयोः सकाशादिवैतत्सुखं च विनाशये॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) धनसमूहः (चित्) सत्कारार्थे अप्यर्थे वा (हि) खलु (ते) तव (इत्था) अनेन हेतुना (भगः) सेवितुमर्हो धनसमूहः (शशमानः) स्तोतुमर्हः (पुरा) पूर्वम् (निदः) निन्दकः। अत्र वा छन्दसि सर्वे विधयो भवन्ति इति नकारलोपः। (अद्वेषः) अविद्यमानो द्वेषो यस्मिन् सः (हस्तयोः) करयोरामलकमिव कर्मफलम् (दधे) धारये॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽहमीश्वरो निन्दकाय मनुष्याय दुःखं यः कश्चित्सृष्टौ धर्मानुसारेण वर्त्तते, तस्मै सुखविज्ञाने प्रयच्छामि, तथैव सर्वैर्युष्माभिरपि कर्त्तव्यमिति॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - येथे वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा मी ईश्वर सर्वांची निंदा करणाऱ्या माणसाला दुःख व स्तुती करणाऱ्याला सुख देतो तसे तुम्हीही करा. ॥ ४ ॥