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आ पू॑षञ्चि॒त्रब॑र्हिष॒माघृ॑णे ध॒रुणं॑ दि॒वः। आजा॑ न॒ष्टं यथा॑ प॒शुम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā pūṣañ citrabarhiṣam āghṛṇe dharuṇaṁ divaḥ | ājā naṣṭaṁ yathā paśum ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। पू॒ष॒न्। चि॒त्रऽब॑र्हिष॒म्। आघृ॑णे। ध॒रुण॑म्। दि॒वः। आ। अ॒ज॒। न॒ष्टम्। यथा॑। प॒शुम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:23» मन्त्र:13 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:10» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में सूर्य्यलोक के गुण प्रकाशित किये हैं-

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे कोई पशुओं का पालनेवाला मनुष्य (नष्टम्) खो गये (पशुम्) गौ आदि पशुओं को प्राप्त होकर प्रकाशित करता है, वैसे यह (आघृणे) परिपूर्ण किरणों (पूषन्) पदार्थों को पुष्ट करनेवाला सूर्यलोक (दिवः) अपने प्रकाश से (चित्रबर्हिषम्) जिससे विचित्र आश्चर्य्यरूप अन्तरिक्ष विदित होता है (धरुणम्) धारण करनेहारे भूगोलों को (आज) अच्छे प्रकार प्रकाश करता है॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे पशुओं को पालनेवाले अनेक काम करके, गो आदि पशुओं को पुष्ट करके, उनके दुग्ध आदि पदार्थों से मनुष्यों को सुखी करते हैं, वैसे ही यह सूर्य्यलोक चित्र-विचित्र लोकों से युक्त आकाश वा आकाश में रहनेवाले पदार्थों को, अपनी किरण वा आकर्षण शक्ति से पुष्ट करके प्रकाशित करता है॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सूर्यलोकगुणा उपदिश्यन्ते।

अन्वय:

यथा कश्चित्पशुपालो नष्टं पशुं प्राप्य प्रकाशयति तथाऽयमाघृण आघृणिः पूषन्पूषा सूर्यलोको दिवश्चित्रबर्हिषं धरुणमन्तरिक्षं प्राप्याज समतात् प्रकाशयति॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (पूषन्) पोषयतीति पूषा सूर्यलोकः। अत्रान्तर्गतो णिच्। श्वनुक्षन्पूषन्प्लीहन्। (उणा०१.१५९) अनेनायं निपातितः। (चित्रबर्हिषम्) चित्रमाश्चर्यं बर्हिरन्तरिक्षं भवति यस्मात्तत् (आघृणे) समन्तात् घृणयः किरणा दीप्तयो यस्य सः (धरुणम्) धारणकर्त्री पृथिवी (दिवः) स्वप्रकाशात् (आ) समन्तात् (अज) अजति प्रकाशं प्रक्षिप्य द्योतयति। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोडन्तर्गतो ण्यर्थश्च। (नष्टम्) अदृश्यम् (यथा) येन प्रकारेण (पशुम्) गवादिकम्॥१३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा पशुपाला अनेकैः कर्म्मभिः पशून् पोषित्वा दुग्धादिभिर्मनुष्यादीन् सुखयति तथैवायं सूर्यलोको विचित्रैर्लोकैर्युक्तमाकाशं तत्स्थान् पदार्थांश्च स्वस्य किरणैराकर्षणेन पोषित्वा सर्वान् प्राणिनः सुखयतीति॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे पशुपालक अनेक कामे करून गाय वगैरे पशूंना पुष्ट करून त्यांच्या दूध इत्यादी पदार्थांनी माणसांना सुखी करतात तसेच हा सूर्यलोक आश्चर्यकारक गोलांनी युक्त आकाशात राहणाऱ्या पदार्थांना आपल्या किरणांनी व आकर्षणशक्तीने पुष्ट करून प्रकाशित करतो. ॥ १३ ॥