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हिर॑ण्यपाणिमू॒तये॑ सवि॒तार॒मुप॑ ह्वये। स चेत्ता॑ दे॒वता॑ प॒दम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

hiraṇyapāṇim ūtaye savitāram upa hvaye | sa cettā devatā padam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हिर॑ण्यऽपाणिम्। ऊ॒तये॑। स॒वि॒तार॑म्। उप॑। ह्व॒ये॒। सः। चेत्ता॑। दे॒वता॑। प॒दम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:22» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अगले मन्त्र में परम ऐश्वर्य्य करानेवाले परमेश्वर का प्रकाश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - मैं (ऊतये) प्रीति के लिये जो (पदम्) सब चराचर जगत् को प्राप्त और (हिरण्यपाणिम्) जिससे व्यवहार में सुवर्ण आदि रत्न मिलते हैं, उस (सवितारम्) सब जगत् के अन्तर्यामी ईश्वर को (उपह्वये) अच्छी प्रकार स्वीकार करता हूँ (सः) वह परमेश्वर (चेत्ता) ज्ञानस्वरूप और (देवता) पूज्यतम देव है॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को जो चेतनमय सब जगह प्राप्त होने और निरन्तर पूजन करने योग्य प्रीति का एक पुञ्ज और ऐश्वर्य्यों का देनेवाला परमेश्वर है, वही निरन्तर उपासना के योग्य है। इस विषय में इसके विना कोई दूसरा पदार्थ उपासना के योग्य नहीं है॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथैश्वर्य्यहेतुरुपदिश्यते।

अन्वय:

अहमूतये यं पदं हिरण्यपाणिं सवितारं परमात्मानमुपह्वये सा चेत्ता देवतास्ति॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यपाणिम्) हिरण्यानि सुवर्णादीनि रत्नानि पाणौ व्यवहारे लभन्ते यस्मात्तम् (ऊतये) प्रीतये (सवितारम्) सर्वजगदन्तर्यामिणमीश्वरम् (उप) उपगमार्थे (ह्वये) स्वीकुर्वे (सः) जगदीश्वरः (चेत्ता) ज्ञानस्वरूपः (देवता) देव एवेति देवता पूज्यतमा। देवात्तल्। (अष्टा०५.४.२७) इति स्वार्थे तल् प्रत्ययः। (पदम्) पद्यते प्राप्तोऽस्ति चराचरं जगत् तम्॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यश्चिन्मयः सर्वत्र व्यापकः पूज्यतमः प्रीतिविषयः सर्वैश्वर्य्यप्रदः परमेश्वरोऽस्ति, स एव नित्यमुपास्यः। नैव तद्विषयेऽस्मादन्यः कश्चित्पदार्थ उपासितुमर्होऽस्तीति मन्तव्यम्॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो चैतन्यमय, सर्वव्यापक, निरंतर पूजनीय, प्रेमपुंज व संपूर्ण ऐश्वर्यदाता परमेश्वर आहे. तोच माणसांनी उपासना करण्यायोग्य आहे. त्याच्याशिवाय दुसरा कोणताही पदार्थ उपासना करण्यायोग्य नाही. ॥ ५ ॥