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या वां॒ कशा॒ मधु॑म॒त्यश्वि॑ना सू॒नृता॑वती। तया॑ य॒ज्ञं मि॑मिक्षतम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā vāṁ kaśā madhumaty aśvinā sūnṛtāvatī | tayā yajñam mimikṣatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। वा॒म्। कशा॑। मधु॑ऽमती। अश्वि॑ना। सू॒नृता॑ऽवती। तया॑। य॒ज्ञम्। मि॒मि॒क्ष॒त॒म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:22» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

वे क्रिया में किनसे संयुक्त हो सकते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे उपदेश करने वा सुनने तथा पढ़ने-पढ़ानेवाले मनुष्यो ! (वाम्) तुम्हारे (अश्विना) गुणप्रकाश करनेवालों की (या) जो (सूनृतावती) प्रशंसनीय बुद्धि से सहित (मधुमती) मधुरगुणयुक्त (कशा) वाणी है, (तया) उससे तुम (यज्ञम्) श्रेष्ठ शिक्षारूप यज्ञ को (मिमिक्षतम्) प्रकाश करने की इच्छा नित्य किया करो॥३॥
भावार्थभाषाः - उपदेश के विना किसी मनुष्य को ज्ञान की वृद्धि कुछ भी नहीं हो सकती, इससे सब मनुष्यों को उत्तम विद्या का उपदेश तथा श्रवण निरन्तर करना चाहिये॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

काभ्यामेतौ सम्प्रयोजितुं शक्यावित्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे उपदेष्ट्रुपदेश्यावध्यापकशिष्यौ वां युवयोरश्विनोर्या सूनृतावती मधुमती कशाऽस्ति तया युवां यज्ञं मिमिक्षतं सेक्तुमिच्छतम्॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) (वाम्) युवयोर्युवां वा (कशा) वाक्। कशेति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (मधुमती) मधुरगुणा (अश्विना) प्रकाशितगुणयोरध्वर्य्योः। अत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (सूनृतावती) सूनृता प्रशस्ता बुद्धिर्विद्यते यस्यां सा। सूनृतेति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) अत्र प्रशंसार्थे मतुप्। (तया) कशया (यज्ञम्) सुशिक्षोपदेशाख्यम् (मिमिक्षतम्) सेक्तुमिच्छतम्॥३॥
भावार्थभाषाः - नैवोपदेशमन्तरा कस्यचित् किञ्चिदपि विज्ञानं वर्धते। तस्मात्सर्वैर्विद्वज्जिज्ञासुभिर्मनुष्यैर्नित्यमुपदेशः श्रवणं च कार्य्यमिति॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - उपदेशाशिवाय कोणत्याही माणसाच्या ज्ञानाची थोडीही वृद्धी होऊ शकत नाही. त्यासाठी सर्व माणसांनी उत्तम विद्येचा उपदेश व श्रवण निरंतर केले पाहिजे. ॥ ३ ॥