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विष्णोः॒ कर्मा॑णि पश्यत॒ यतो॑ व्र॒तानि॑ पस्प॒शे। इन्द्र॑स्य॒ युज्यः॒ सखा॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viṣṇoḥ karmāṇi paśyata yato vratāni paspaśe | indrasya yujyaḥ sakhā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विष्णोः॑। कर्मा॑णि। प॒श्य॒त॒। यतः॑। व्र॒तानि॑। प॒स्प॒शे। इन्द्र॑स्य। युज्यः॑। सखा॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:22» मन्त्र:19 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:7» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर व्यापक परमेश्वर के किये हुए कर्म मनुष्य नित्य देखें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! तुम जो (इन्द्रस्य) जीव का (युज्यः) अर्थात् जो अपनी व्याप्ति से पदार्थों में संयोग करनेवाले दिशा, काल और आकाश हैं, उनमें व्यापक होके रमने वा (सखा) सर्व सुखों के सम्पादन करने से मित्र है (यतः) जिससे जीव (व्रतानि) सत्य बोलने और न्याय करने आदि उत्तम कर्मों को (पस्पशे) प्राप्त होता है उस (विष्णोः) सर्वत्र व्यापक शुद्ध और स्वभावसिद्ध अनन्त सामर्थ्यवाले परमेश्वर के (कर्माणि) जो कि जगत् की रचना पालना न्याय और प्रयत्न करना आदि कर्म हैं, उनको तुम लोग (पश्यत) अच्छे प्रकार विदित करो॥१९॥
भावार्थभाषाः - जिस कारण सब के मित्र जगदीश्वर ने पृथिवी आदि लोक तथा जीवों के साधनसहित शरीर रचे हैं, इसी से सब प्राणी अपने-अपने कार्यों के करने को समर्थ होते हैं॥१९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सायुज्य मुक्ति

पदार्थान्वयभाषाः - १. गतमन्त्र के अनुसार जो व्यापक उन्नति करनेवाला विष्णु है उस (विष्णोः) - विष्णु के (कर्माणि) - कर्मों को (पश्यत) - देखो । प्रभु कहते हैं कि अपने सामने तुम विष्णु के कर्मों को ही आदर्श के रूप में रक्खो ।  २. उसके कर्मों की उत्कृष्टता का कारण यही है कि (यतः) - क्योंकि वह (व्रतानि) - अपने कर्तव्य - कर्मों को (पस्पशे) - बारीकी से देखता है - अपने कर्मों की आलोचना करता हुआ वह उनके दोषों को दूर कर देता है ।  ३. वस्तुतः अपने इन पार्थिव कर्मों के द्वारा ही वह (इन्द्रस्य) - उस परमैश्वर्यशाली प्रभु का (युज्यः) - सदा साथ रहनेवाला (सखा) - मित्र बनता है । जो व्यक्ति आत्मालोचन करता हुआ अपने जीवन व अपने कर्मों को पवित्र बनाएगा , वही प्रभु को पानेवाला होगा और इसी के कर्म लोगों के सामने आदर्श के रूप में होते हैं । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - व्यापक उन्नति करनेवाला पुरुष अपने कार्यों की सूक्ष्म आलोचना करता रहता है - उन कर्मों में आनेवाली अपवित्रता को दूर करके वह प्रभु का सयुज मित्र बनता है । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तत्कृतानि कर्म्माणि मनुष्येण नित्यं द्रष्टव्यानीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे मनुष्या यूयं य इन्द्रस्य युज्यः सखास्ति, यतो जीवो व्रतानि पस्पशे स्पृशति, तस्य विष्णोः कर्माणि पश्यत॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विष्णोः) सर्वत्र व्यापकस्य शुद्धस्य स्वाभाविकानन्तसामर्थ्यस्येश्वरस्य (कर्माणि) जगद्रचनपालनन्यायकरणप्रलयत्वादीनि (पश्यत) सम्यग्विजानीत (यतः) कर्मबोधस्य सकाशात् (व्रतानि) सत्यभाषणन्यायकरणादीनि (पस्पशे) स्पृशति कर्त्तुं शक्नोति। अत्र लडर्थे लिट्। (इन्द्रस्य) जीवस्य (युज्यः) युञ्जन्ति व्याप्त्या सर्वान् पदार्थान् ते युजो दिक्कालाकाशादयस्तत्र भवः (सखा) सर्वस्य मित्रः सर्वसुखसम्पादकत्वात्॥१९॥
भावार्थभाषाः - यस्मात् सर्वमित्रेण जगदीश्वरेण जीवानां पृथिव्यादीनि ससाधनानि शरीराणि रचितानि तस्मादेवं सर्वे प्राणिनः स्वानि स्वानि कर्माणि कर्त्तुं शक्नुवन्तीति॥१९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Watch the creation and actions of Vishnu. Thence the souls know and observe the law and discipline of their existence. Vishnu is the friend and constant companion of the soul.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Man should always look at the works of God is taught in the 19th Mantra..

अन्वय:

O men, look at the works of that Omnipresent, Absolutely Pure and Omnipotent God Who is the true friend of the soul, the giver of all Happiness. You must know His acts of the creation, Protection, Justice and dissolution of the world by which a man is able to do the noble deeds of truth and justice etc.

पदार्थान्वयभाषाः - (विष्णोः) सर्वत्र व्यापकस्य शुद्धस्य स्वाभाविकानन्तसामथ्र्यस्य ईश्वरम्य = Of God who is All-pervading Perfectly Pure and Almighty. (व्रतानि) सत्यभाषणन्यायकरणादीनि = Vows or good deeds like truth and justice etc.(इन्द्रस्य) = of the soul. (पस्पशे) स्पृशति, कर्तुं शक्नोति = Touches or is able to do.
भावार्थभाषाः - It is because God Who is the Friend of all, has provided the souls with the earth and bodies with all their means of progress, they are able to perform noble works.
टिप्पणी: The above Mantra can be metrically translated as follows as we have done in the translation of the Hymns of the Sama Veda." Look at the works of God. From which man can' learn his duties. Soul's true friend is the Lord. Who is Maker of all beauties."
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या कारणांपासून (प्रकृतीपासून) सर्वांचा मित्र असलेल्या जगदीश्वराने पृथ्वी इत्यादी लोक तसेच जीवांच्या साधनांसह शरीरे उत्पन्न केलेली आहेत, त्याद्वारे सर्व प्राणी आपापले कार्य करण्यास समर्थ होतात. ॥ १९ ॥