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इ॒दं विष्णु॒र्वि च॑क्रमे त्रे॒धा निद॑धे प॒दम्। समू॑ळ्हमस्य पांसु॒रे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idaṁ viṣṇur vi cakrame tredhā ni dadhe padam | samūḻham asya pāṁsure ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒दम्। विष्णुः॑। वि। च॒क्र॒मे॒। त्रे॒धा। नि। द॒धे॒। प॒दम्। सम्ऽऊ॑ळ्हम्। अ॒स्य॒। पां॒सु॒रे॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:22» मन्त्र:17 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:17


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर ने इस संसार को कितने प्रकार का रचा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्य लोग जो (विष्णुः) व्यापक ईश्वर (त्रेधा) तीन प्रकार का (इदम्) यह प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष (पदम्) प्राप्त होनेवाला जगत् है, उसको (विचक्रमे) यथायोग्य प्रकृति और परमाणु आदि के पद वा अंशों को ग्रहण कर सावयव अर्थात् शरीरवाला करता और जिसने (अस्य) इस तीन प्रकार के जगत् का (समूढम्) अच्छी प्रकार तर्क से जानने योग्य और आकाश के बीच में रहनेवाला परमाणुमय जगत् है, उसको (पांसुरे) जिसमें उत्तम-उत्तम मिट्टी आदि पदार्थों के अति सूक्ष्म कण रहते हैं, उनको आकाश में (विदधे) धारण किया है। जो प्रजा का शिर अर्थात् उत्तम भाग कारणरूप और जो विद्या आदि धनों का शिर अर्थात् उत्तम फल आनन्दरूप तथा जो प्राणों का शिर अर्थात् प्रीति उत्पादन करनेवाला सुख है, ये सब विष्णुपद कहाते हैं, यह और्णवाभ आचार्य्य का मत है। पादैः सूयन्त इति वा इसके कहने से कारणों से कार्य्य की उत्पत्ति की है, ऐसा जानना चाहिये। पदं न दृश्यते जो इन्द्रियों से ग्रहण नहीं होते, वे परमाणु आदि पदार्थ अन्तरिक्ष में रहते भी हैं, परन्तु आँखों से नहीं दीखते। इदं त्रेधाभावाय इस तीन प्रकार के जगत् को जानना चाहिये अर्थात् एक प्रकाशरहित पृथिवीरूप, दूसरा कारणरूप जो कि देखने में नहीं आता, और तीसरा प्रकाशमय सूर्य्य आदि लोक हैं। इस मन्त्र में विष्णु शब्द से व्यापक ईश्वर का ग्रहण है॥१७॥
भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने इस संसार में तीन प्रकार का जगत् रचा है अर्थात् एक पृथिवीरूप, दूसरा अन्तरिक्ष आकाश में रहनेवाला प्रकृति परमाणुरूप और तीसरा प्रकाशमय सूर्य्य आदि लोक तीन आधाररूप हैं, इनमें से आकाश में वायु के आधार से रहनेवाला जो कारणरूप है, वही पृथिवी और सूर्य्य आदि लोकों का बढ़ानेवाला है और इस जगत् को ईश्वर के विना कोई बनाने को समर्थ नहीं हो सकता, क्योंकि किसी का ऐसा सामर्थ्य ही नहीं॥१७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

तीन कदम

पदार्थान्वयभाषाः - १. गतमन्त्र के अनुसार (विष्णुः) - व्यापक उन्नति करनेवाले जीव ने (इदम्) - यह (विचक्रमे) - विशेष पुरुषार्थ किया है कि (त्रेधा) - तीन प्रकार से (पदम्) - कदम को (निदधे) - रक्खा है । केवल शरीर , केवल मन व केवल मस्तिष्क की उन्नति न करके उसने तीनों की ही उन्नति की है - शरीर को नीरोग बनाया है , मन को निर्मल और मस्तिष्क को निशित - तीन बुद्धिवाला । इस प्रकार त्रिविध उन्नति करते हुए (अस्य) - इस जीव ने (पांसुरे) - इस धूलि से बने शरीर में इस पार्थिव देह में (सम् ऊढम्) - कर्त्तव्य का सम्यक् वहन किया है । जैसे ब्रह्माण्ड की त्रिलोकी में पृथिवी में अग्नि का निवास है , इसी प्रकार इस विष्णु ने भी इस शरीर में शक्ति की रक्षा के द्वारा ' प्राणाग्नि' को स्थापित किया है । बाह्य अन्तरिक्ष में जैसे चन्द्रमा की स्थिति है , उसी प्रकार इसने अपने हदयान्तरिक्ष में [चदि आह्लादे] आह्लाद - मनः प्रसाद को स्थापित किया है । द्युलोक सूर्य से उज्ज्वल है । इसका मस्तिष्करूप द्युलोक भी ज्ञानसूर्य से उज्ज्वल हुआ है । इस प्रकार इस विष्णु ने स्वकर्तव्य को सम्यक् निबाहा है । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - इस पार्थिव शरीर में कर्तव्य का निर्वहण यही है कि हम नीरोगता , निर्मलता व निशिततारूप तीन कदमों को रखनेवाले हों । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वरेणैतज्जगत् कियत्प्रकारकं रचितमित्युपदिश्यते।

अन्वय:

मनुष्यैर्यो विष्णुस्त्रेधेदं पदं विचक्रमेऽस्य त्रिविधस्य जगतः समूढं मध्यस्थं जगत्पांसुरेऽन्तरिक्षे विदधे विहितवानस्ति स एवोपास्यो वर्त्तते इति बोध्यम्॥१७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) प्रत्यक्षाप्रत्यक्षं जगत् (विष्णुः) व्यापकेश्वरः (वि) विविधार्थे (चक्रमे) यथायोग्यं प्रकृतिपरमाण्वादिपादानंशान् विक्षिप्य सावयवं कृतवान् (त्रेधा) त्रिःप्रकारकम् (नि) नितराम् (दधे) धृतवान् (पदम्) यत्पद्यते प्राप्यते तत् (समूढम्) यत्सम्यक् तर्क्यते तर्केण यद्विज्ञायते तत् (अस्य) जगतः (पांसुरे) प्रशस्ताः पांसवो रेणवो विद्यन्ते यस्मिन्नन्तरिक्षे तस्मिन्। नगपांसुपाण्डुभ्यश्चेति वक्तव्यम्। (अष्टा०५.२.१०७) अनेन प्रशंसार्थे रः प्रत्ययः॥यास्कमुनिरिमं मन्त्रमेवं व्याचष्टे-विष्णुर्विशतेव्यश्नोतेर्वा यदिदं किं च तद्विक्रमते विष्णुस्त्रिधा निधत्ते पदं त्रेधाभावाय पृथिव्यामन्तरिक्षे दिवीति शाकपूणिः। समारोहणं विष्णुपदे गयशिरसीत्यौर्णवाभः। समूढमस्य पांसुरेऽप्यायनेऽन्तरिक्षे पदं न दृश्यतेऽपि वोपमार्थे समूढमस्य पांसुर इव पदं न दृश्यत इति पांसवः पादैः सूयन्त इति वा पन्नाः शेरत इति वा पंसनीया भन्तीति वा। (निरु०१२.१९) गयशिरसीत्यत्र गय इत्यपत्यनामसु पठितम्। (निघं०२.२) गय इति धननामसु च। (निघं०२.१०) प्राणा वै गयाः। (श०ब्रा०१४.७.१.७) प्रजायाः शिर उत्तमभागो यत्कारणं तद्विष्णुपदं गयानां विद्यादिधनानां यच्छिरः फलमानन्दः सोऽपि विष्णुपदाख्यः। गयानां प्राणानां शिरः प्रीतिजनकं सुखं तदपि विष्णुपदमित्यौर्णवाभाचार्य्यस्य मतम्। पादैः सूयन्ते वाऽनेन कारणांशैः कार्य्यमुत्पद्यत इति बोध्यम्। पदं न दृश्यतेऽनेनातीन्द्रियाः परमाण्वादयोऽन्तरिक्षे विद्यमाना अपि चक्षुषा न दृश्यन्त इति वेदितव्यम्। इदं त्रेधाभावायेति। एकं प्रत्यक्षं प्रकाशरहितं पृथिवीमयं द्वितीयं कारणाख्यमदृश्यं तृतीयं प्रकाशमयं सूर्य्यादिकं च जगदस्तीति बोध्यम्। विष्णुशब्देनात्र व्यापकेश्वरो ग्राह्य इति॥१७॥
भावार्थभाषाः - परमेश्वरेणास्मिन् संसारे त्रिविधं जगद्रचितमेकं पृथिवीमयं द्वितीयमन्तरिक्षस्थं त्रसरेण्वादिमयं तृतीयं प्रकाशमयं च। एतेषां त्रयाणामेतानि त्रीण्येवाधारभूतानि यच्चान्तरिक्षस्थं तदेव पृथिव्याः सूर्य्यादेश्च वर्धकं नैवैतदीश्वरेण विना कश्चिज्जीवो विधातुं शक्नोति। सामर्थ्याभावात्। सायणाचार्य्यादिभिर्विलसनाख्येन चास्य मन्त्रस्यार्थस्य वामनाभिप्रायेण वर्णितत्वात्स पूर्वपश्चिमपर्वतस्थो विष्णुरस्तीति मिथ्यार्थोऽस्तीति वेद्यम्॥१७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Vishnu created this threefold universe of matter, motion and mind in three steps of evolution through Prakriti, subtle elements and gross elements, shaped the atoms into form and fixed the form in eternal space and time.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Of how many kinds has this world been made by God is taught in the 17th Mantra.

अन्वय:

Men should adore that Omnipresent God only Who made this world in three ways i. e. (1) This visible earth without light (2) invisible subtle world in the form of atoms etc. (3) Shining solar world. He made the form of the universe that can be logically known in the firmament. Yaskacharya explains this Mantra in his well-known work Nirukta 12.19 in the above manner.

पदार्थान्वयभाषाः - (विष्णुः) व्यापकेश्वरः = All pervading God. (चक्रमे ) यथायोग्यं प्रकृतिपरमाण्वादिपादान् अंशान्विक्षिप्य सावयवं कृतवान् | = Created in an orderly manner out of the atoms of the Primordial Matter. (पदम् ) यत् पद्यते प्राप्यते तत् = World which is realized or seen by all. (समूढम्) यत् सम्यक् तर्क्यते तर्केण यद् विज्ञायते तत् = That which is known through logic.
भावार्थभाषाः - God has made the Universe of three kinds. (1)Consisting of the earth. (2) Consisting of त्रसरेणु (trasarenu) i. e. atoms or motes of dust which are seen moving in a sun-beam, lying in the firmament or intermediate region between heaven and earth. (3) Bright solar world. Out of these three, the earth, the firmament and the sky, the invisible subtle cause consisting of atoms and molecules in the middle region is the cause of the growth of the earth and the sun etc. All this universe can not be made by any one except the Omnipotent God because none has got that power. Sayanacharya and Wilson have misinterpreted this Mantra thinking wrongly that there is allusion to the theory of Vamana Avatar or dwarf incarnation in this.
टिप्पणी: Rishi Dayananda while interpreting the Mantra on the authority of Yaskacharya the author of the famous Nirukta and other Acharyas in the above most rational manner, has criticised Sayanacharya and Wilson for their wrong interpretation' referring to the Pauranik Vamanavatar or dwarf incarnation story. For instance, Sayanacharya says in his commentary- (विष्णु:) त्रिविक्रमावतारधारी इदं प्रतीयमानं सर्वे जगदुद्दिश्य विशेषेण क्रमणंकृतवान् । तदा त्रिभिः प्रकारैः स्वकीयं पदं प्रक्षिप्तवान् । अस्य विष्णोः पांसुरे-धूलियुक्ते पादस्थाने इदं सर्व जगत् सम्यक् अन्तर्भूतम् || Which Prof. Wilson translates as follows- "Vishnu (in the form of Trivikrama Avatara) traversed this world; three times, he planted his foot, and the whole world was collected in the dust of his foot-step." In his notes on P. 234 Wilson says- Planted his foot--This looks still more like an allusion to the fourth Avatar, although no mention is made of king Bali or the dwarf, and these may have been subsequent grafts upon the original tradition of Vishnu's three paces etc. Griffith has also mis-interpreted the Mantra following Sayanacharya. He translated it as follows--- "Through all this world strode Vishnu, thrice his foot he planted, and the whole. Was gathered in his foot -step's, "dust." So Rishi Dayananda was right in condemning the wrong interpretation put by Sayanacharya, Wilson and others, though Wilson had to admit willy nilly that "no mention is made of king Bali or the dwarf, and these may have been grafted upon the original tradition of Vishnu's three paces." How can then such interpretation not based upon the original text, be accepted as authentic.?
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - परमेश्वराने या जगात तीन प्रकारची निर्मिती केलेली आहे. अर्थात एक पृथ्वीरूपी, दुसरी अंतरिक्ष, आकाशात राहणारे प्रकृती परमाणूरूपी व तिसरी प्रकाशमय सूर्य इत्यादी लोक. हे तीन आधाररूप आहेत.
टिप्पणी: यापैकी आकाशात राहणारे वायूच्या आधारे कारणरूप आहेत. तेच पृथ्वी व सूर्य इत्यादींना वाढविणारे आहे. ईश्वराखेरीज कोणीही हे जग उत्पन्न करण्यास समथ नाही, कारण असे कुणाचेच सामर्थ्य नाही. ॥ १७ ॥