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ता य॒ज्ञेषु॒ प्र शं॑सतेन्द्रा॒ग्नी शु॑म्भता नरः। ता गा॑य॒त्रेषु॑ गायत॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā yajñeṣu pra śaṁsatendrāgnī śumbhatā naraḥ | tā gāyatreṣu gāyata ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। य॒ज्ञेषु॑। प्र। शं॒स॒त॒। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। शु॒म्भ॒त॒। न॒रः॒। ता। गा॒य॒त्रेषु॑। गा॒य॒त॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:21» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरः) यज्ञ करनेवाले मनुष्यो ! तुम जिस पूर्वोक्त (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि के (प्रशंसत) गुणों को प्रकाशित तथा (शुम्भत) सब जगह कामों में प्रदीप्त करते हो (ता) उनको (गायत्रेषु) गायत्री छन्दवाले वेद के स्तोत्रों में (गायत) षड्ज आदि स्वरों से गाओ॥२॥
भावार्थभाषाः - कोई भी मनुष्य अभ्यास के विना वायु और अग्नि के गुणों के जानने वा उनसे उपकार लेने को समर्थ नहीं हो सकते॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

यज्ञ - अलंकृति , प्राणरक्षण

पदार्थान्वयभाषाः - १. (ता) - उन इन्द्र और अग्नि को ही (यज्ञेषु) - लोकहित के कर्मों में (प्रशंसत) - प्रशंसित करो । वस्तुतः हम उतना - उतना ही यज्ञ कर पाते हैं जितना - जितना कि हमारे अन्दर इन्द्र व अग्नि - तत्त्व होते हैं । कोई भी यज्ञ बल व प्रकाश के बिना सम्भव नहीं ।  २. हे (इन्द्राग्नी) - बल व प्रकाश के देवो ! आप (नरः) - उन्नति - पथ पर चलनेवालों को (शुम्भता) - अलंकृत कर दो । इन्द्राग्नी की कृपा से जीवन में सब सद्गुणों का वास होता है और हमारा जीवन अंलकृत हो उठता है । हे मनुष्यो ! (गायत्रेषु) - प्राणरक्षण के यज्ञों [गयाः प्राणाः , त्रा - रक्षण] में (ता) - इन इन्द्राग्नी का ही (गायत) - गान करो । वस्तुतः प्राणरक्षण के मौलिक आधार इन्द्र और अग्नि ही हैं । बल और प्रकाश मेरे जीवन की रक्षा करते हैं । 
भावार्थभाषाः - भावार्थ - सब यज्ञ बल और प्रकाश के द्वारा ही सम्पन्न हुआ करते हैं । ये ही मानव - जीवन को सब सद्गुणों से सुभूषित करते हैं और वस्तुतः प्राण - रक्षण की निर्भरता भी इन दो तत्वों पर ही है एवं इन्द्राग्नी हमारे जीवनों को यज्ञमय , गुणालंकृत व सुरक्षित प्राण - शक्तिवाला बनाते हैं । 
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे नरो यूयं याविन्द्राग्नी यज्ञेषु प्रशंसत शुम्भत च ता तौ गायत्रेषु गायत॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ। अत्रोभयत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (यज्ञेषु) पठनपाठनेषु शिल्पमयादिषु यज्ञेषु वा (प्र) क्रियायोगे (शंसत) स्तुवीत तद्गुणान् प्रकाशयत। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नी (शुम्भत) सर्वत्र यानादिकृत्येषु प्रदीप्यत। अत्र अन्येषामपि दृश्यते इति दीर्घः। (नरः) नेतारो मनुष्याः। नयतेर्डिच्च। (उणा०२.९६) अनेन णीञ् धातोर्ऋः प्रत्ययो डिच्च। (ता) तौ (गायत्रेषु) यानि गायत्रीछन्दस्कानीमानि वेदोक्तानि स्तोत्राणि तेषु (गायत) षड्जादिस्वरैर्गानं कुरुत॥२॥
भावार्थभाषाः - नैव मनुष्या अभ्यासेन विना वायोरग्नेश्च गुणज्ञानं कृत्वा तयोः सकाशादुपकारं ग्रहीतुं शक्नुवन्ति॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - All ye men and women, sing and celebrate the qualities of fire and air in yajna, develop and illuminate them in use, and glorify them in Gayatri music of the Veda.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

Of what kind are those two (air and fire) is taught in the next Mantra.

अन्वय:

O leaders, praise well Indra and Agni (air and fire) in all the Yajnas consisting of study and teaching or arts and crafts etc. Illuminate them or utilize them properly in the manufacture of various conveyances, cars and such other useful works. Sing their praise through the Vedic hymns consisting of Gayatri and other meters and chant them in Shadja and other tunes.

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्ञेषु)-पठनपाठनेषु शिल्पमयादिषु यज्ञेषु वा = In Yajnas consisting of study and teaching or arts, crafts and industries etc. (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नी = air and fire. (शुम्भत ) सर्वत्र यानादिकृत्येषु प्रदीपयत । . = Illuminate or utilize them in various conveyances. (गायत्रेषु ) यानि गायत्रीछन्दस्कानि इमानि वेदोक्तानि स्तोत्राणि तेषु । = In the Vedic hymns of Gayatri Metre.
भावार्थभाषाः - Without practice, men can not know the attributes of the air and fire and benefit from them.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - कोणताही माणूस अभ्यासाशिवाय वायू व अग्नीच्या गुणांना जाणण्यास व त्यांच्यापासून उपकार घेण्यास समर्थ होऊ शकत नाही. ॥ २ ॥