अ॒यं दे॒वाय॒ जन्म॑ने॒ स्तोमो॒ विप्रे॑भिरास॒या। अका॑रि रत्न॒धात॑मः॥
ayaṁ devāya janmane stomo viprebhir āsayā | akāri ratnadhātamaḥ ||
अ॒यम्। दे॒वाय॑। जन्म॑ने। स्तोमः॑। विप्रे॑भिः। आ॒स॒या। अका॑रि। र॒त्न॒ऽधात॑मः॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब दूसरे अध्याय का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में ऋभु की स्तुति का प्रकाश किया है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
तत्र पूर्वमृभुस्तुतिः प्रकाश्यते।
ऋभुभिर्विप्रेभिरासया देवाय जन्मने यादृशो रत्नधातमोऽयँ स्तोमोऽकारि क्रियते स तादृशजन्मभोगकारी जायते॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)एकोणिसाव्या सूक्तात सांगितलेल्या पदार्थांचा उपयोग करून घेण्यासाठी बुद्धिमानच समर्थ असतात. या अभिप्रायाने या विसाव्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती मागच्या एकोणिसाव्या सूक्ताबरोबर जाणली पाहिजे.