वांछित मन्त्र चुनें

अ॒यं दे॒वाय॒ जन्म॑ने॒ स्तोमो॒ विप्रे॑भिरास॒या। अका॑रि रत्न॒धात॑मः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ devāya janmane stomo viprebhir āsayā | akāri ratnadhātamaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒यम्। दे॒वाय॑। जन्म॑ने। स्तोमः॑। विप्रे॑भिः। आ॒स॒या। अका॑रि। र॒त्न॒ऽधात॑मः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:20» मन्त्र:1 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब दूसरे अध्याय का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में ऋभु की स्तुति का प्रकाश किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - (विप्रेभिः) ऋभु अर्थात् बुद्धिमान् विद्वान् लोग (आसया) अपने मुख से (देवाय) अच्छे-अच्छे गुणों के भोगों से युक्त (जन्मने) दूसरे जन्म के लिये (रत्नधातमः) रमणीय अर्थात् अतिसुन्दरता से सुखों की दिलानेवाली जैसी (अयम्) विद्या के विचार से प्रत्यक्ष की हुई परमेश्वर की (स्तोमः) स्तुति है, वह वैसे जन्म के भोग करनेवाली होती है॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में पुनर्जन्म का विधान जानना चाहिये। मनुष्य जैसे कर्म किया करते हैं, वैसे ही जन्म और भोग उनको प्राप्त होते हैं॥१॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

तत्र पूर्वमृभुस्तुतिः प्रकाश्यते।

अन्वय:

ऋभुभिर्विप्रेभिरासया देवाय जन्मने यादृशो रत्नधातमोऽयँ स्तोमोऽकारि क्रियते स तादृशजन्मभोगकारी जायते॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) विद्याविचारेण प्रत्यक्षमनुष्ठीयमानः (देवाय) दिव्यगुणभोगयुक्ताय (जन्मने) वर्त्तमानदेहोपयोगाय पुनः शरीरधारणेन प्रादुर्भावाय वा (स्तोमः) स्तुतिसमूहः (विप्रेभिः) मेधाविभिः। अत्र बहुलं छन्दसि इति भिसः स्थान ऐसभावः। (आसया) मुखेन। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वा इत्यास्यशब्दस्य यलोपः। सुपां सुलुग्० इति विभक्तेर्याजादेशश्च। (अकारि) क्रियते। अत्र लडर्थे लुङ्। (रत्नधातमः) रत्नानि रमणीयानि सुखानि दधाति येन सोऽतिशयितः॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र पुनर्जन्मविधानं विज्ञेयम्। मनुष्यैर्यादृशानि कर्माणि क्रियन्ते तादृशानि जन्मानि भोगाश्च प्राप्यन्ते॥१॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

एकोणिसाव्या सूक्तात सांगितलेल्या पदार्थांचा उपयोग करून घेण्यासाठी बुद्धिमानच समर्थ असतात. या अभिप्रायाने या विसाव्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती मागच्या एकोणिसाव्या सूक्ताबरोबर जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात पुनर्जन्माचे विधान केलेले आहे, हे जाणले पाहिजे. माणसे जसे कर्म करतात तसेच जन्म व भोग त्यांना प्राप्त होतात. ॥ १ ॥