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अ॒दृष्टा॑न्हन्त्याय॒त्यथो॑ हन्ति पराय॒ती। अथो॑ अवघ्न॒ती ह॒न्त्यथो॑ पिनष्टि पिंष॒ती ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adṛṣṭān hanty āyaty atho hanti parāyatī | atho avaghnatī hanty atho pinaṣṭi piṁṣatī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒दृष्टा॑न्। ह॒न्ति॒। आ॒ऽय॒ती। अथो॒ इति॑। ह॒न्ति॒। प॒रा॒ऽय॒ती। अथो॒ इति॑। अ॒व॒ऽघ्न॒ती। ह॒न्ति॒। अथो॒ इति॑। पि॒न॒ष्टि॒। पिं॒ष॒ती ॥ १.१९१.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:191» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:14» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (आयती) अच्छे प्रकार प्राप्त हुई औषधी (अदृष्टान्) अदृष्ट विषधारी जीवों को (हन्ति) नष्ट करती (अथो) इसके अनन्तर (परायती) पीछे प्राप्त हुई ओषधी (हन्ति) विषधारियों को दूर करती है (अथो) इसके अनन्तर (अवघ्नती) अत्यन्त दुःख देती हुई ओषधि (हन्ति) विषधारियों को नष्ट करती (अथो) इसके अनन्तर (पिंषती) पीई जाती हुई ओषधि (पिनष्टि) विषधारियों को पीषती है ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - जो आये, न आये वा आनेवाले विषधारियों को अगली-पिछली ओषधियों के देने से निवृत्त कराते हैं, वे विषधारियों के विषों से नहीं पीड़ित होते हैं ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

आयत्योषधिरदृष्टान् हन्ति। अथो परायती हन्ति। अथोऽवघ्नती हन्ति। अथोऽपिंषत्योषधी पिनष्टि ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अदृष्टान्) दृष्टिपथमनागतान् (हन्ति) नाशयति (आयती) समन्तात्प्राप्यमाणौषधी (अथो) (हन्ति) दूरी करोति (परायती) परागच्छन्ती (अथो) (अवघ्नती) अत्यन्तं दुःखयन्ती (हन्ति) (अथो) (पिनष्टि) सङ्घर्षति (पिंषती) पेषणं कुर्वन्ती ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - ये आगतनागतानागन्तुकांश्च विषधारिणः पूर्वापरौषधिदानेन निवर्तयन्ति ते विषधारिणां विषैर्नावगाह्यन्ते ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे दृष्ट व अदृष्ट तसेच आगन्तुक विषधाऱ्यांना जुनी नवी औषधी देऊन नष्ट करतात ते विषधाऱ्यापासून पीडित होत नाहीत. ॥ २ ॥