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त्रिः स॒प्त वि॑ष्पुलिङ्ग॒का वि॒षस्य॒ पुष्य॑मक्षन्। ताश्चि॒न्नु न म॑रन्ति॒ नो व॒यं म॑रामा॒रे अ॑स्य॒ योज॑नं हरि॒ष्ठा मधु॑ त्वा मधु॒ला च॑कार ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

triḥ sapta viṣpuliṅgakā viṣasya puṣyam akṣan | tāś cin nu na maranti no vayam marāmāre asya yojanaṁ hariṣṭhā madhu tvā madhulā cakāra ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्रिः। स॒प्त। वि॒ष्पु॒लि॒ङ्ग॒काः। वि॒षस्य॑। पुष्य॑म्। अ॒क्ष॒न्। ताः। चि॒त्। नु। न। म॒र॒न्ति॒। नो इति॑। व॒यम्। म॒रा॒म॒। आ॒रे। अ॒स्य॒। योज॑नम्। ह॒रि॒ऽस्थाः। मधु॑। त्वा॒। म॒धु॒ला। च॒का॒र॒ ॥ १.१९१.१२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:191» मन्त्र:12 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब और जीवों से विष हरने के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (त्रि, सप्त, विष्पुलिङ्गकाः) इक्कीस प्रकार की छोटी छोटी चिड़ियाँ (विषस्य) विष के (पुष्पम्) पुष्ट होने योग्य पुष्प को (अक्षन्) खाती हैं (ताः, चित्, नु) वे भी (न) न (मरन्ति) मरती हैं और (वयम्) हम लोग (नो) न (मराम) मरें (हरिष्ठाः) विष हरनेवाला वैद्यवर (अस्य) इस विष का (योजनम्) योग (आरे) दूर करता है, वह हे विषधारी ! (त्वा) तुझे (मधु) मधुरता को (चकार) प्राप्त करता है यही इसकी (मधुला) विषहरण मधु ग्रहण करनेवाली विद्या है ॥ १२ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे जोंक विष हरनेवाली हैं वैसे इक्कीस छोटी-छोटी पक्षिणी पङ्खोंवाली चिड़ियाँ विष खानेवाली हैं। उनसे और ओषधियों से जो विष सम्बन्धी रोगों का नाश करते हैं, वे चिरंजीवी होते हैं ॥ १२ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथान्यजीवेभ्यो विषहरणविषयमाह ।

अन्वय:

यास्त्रिः सप्त विष्पुलिङ्गका विषस्य पुष्पमक्षन्। ताश्चिन्नुन मरन्ति वयं नो मराम। यो हरिष्ठा अस्य योजनमारे करोति स हे विषधर त्वा त्वां मधु चकार करोति सैषास्य मधुला विद्यास्ति ॥ १२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्रिः) त्रिवारम् (सप्त) (विष्पुलिङ्गकाः) ह्रस्वाः पक्षिणः (विषस्य) (पुष्पम्) पोषितुं योग्यम् (अक्षन्) अदन्ति (ताः) (चित्) इव (नु) सद्यः (न) (मरन्ति) (नो) (वयम्) (मराम) (आरे) (अस्य) (योजनम्) (हरिष्ठाः) (मधु) (त्वा) (मधुला) (चकार) ॥ १२ ॥
भावार्थभाषाः - यथा जलौका विषहर्यः सन्ति तथैकविंशतिर्ह्रस्वाः पक्षिण्यो विषभक्षिकाः सन्ति तैरौषधैश्च ये विषरोगान्नाशयन्ति ते चिरं जीवन्ति ॥ १२ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे जळू विषहरण करणारे असतात तसे एकवीस लहान लहान पंख असणाऱ्या चिमण्या विष खाणाऱ्या असतात. त्यांच्याद्वारे व औषधींकडून जे वैद्य विषासंबंधी रोगांचा नाश करतात ते दीर्घायू होतात. ॥ १२ ॥