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इ॒य॒त्ति॒का श॑कुन्ति॒का स॒का ज॑घास ते वि॒षम्। सो चि॒न्नु न म॑राति॒ नो व॒यं म॑रामा॒रे अ॑स्य॒ योज॑नं हरि॒ष्ठा मधु॑ त्वा मधु॒ला च॑कार ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iyattikā śakuntikā sakā jaghāsa te viṣam | so cin nu na marāti no vayam marāmāre asya yojanaṁ hariṣṭhā madhu tvā madhulā cakāra ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒य॒त्ति॒का। श॒कु॒न्ति॒का। स॒का। ज॒घा॒स॒। ते॒। वि॒षम्। सो इति॑। चि॒त्। नु। न। म॒रा॒ति॒। नो इति॑। व॒यम्। म॒रा॒म॒। आ॒रे। अ॒स्य॒। योज॑नम्। ह॒रि॒ऽस्थाः। मधु॑। त्वा॒। म॒धु॒ला। च॒का॒र॒ ॥ १.१९१.११

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:191» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विष हरनेवाले पक्षी के निमित्त को ले विष हरने के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विष के भय से डरते हुए जन ! जो (इयत्तिका) इतने विशेष देश में हुई (शकुन्तिका) कपिञ्जली पक्षिणी है (सका) वह (ते) तेरे (विषम्) विष को (जघास) खा लेती है (सो, चित्, नु) वह भी शीघ्र (न) नहीं (मराति) मरे और (वयम्) हम लोग (नो) न (मराम) मारे जायें और (अस्य) इस उक्त पक्षिणी के संयोग से विष का (योजनम्) योग (आरे) दूर होता है। हे विषधारी (हरिष्ठाः) विषहरण में स्थिर विष हरनेवाले वैद्य ! (त्वा) तुझे (मधु) मधुरता को (चकार) प्राप्त करता है (यही) इसकी (मधुला) मधुरता ग्रहण कराने और विष हरनेवाली विद्या है ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य जो विष हरनेवाले पक्षी हैं, उन्हें पालन कर उनसे विष हराया करें ॥ ११ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विषहारकपक्षिनिमित्तं विषहरणविषयमाह ।

अन्वय:

हे विषभयभीतजन या इयत्तिका शकुन्तिका सका ते विषं जघास सो चिन्नु न मराति वयं नो मरामास्य योजनमारे भवति। हे विषधारिन् हरिष्ठास्त्वा मधु चकारैषास्या मधुलास्ति ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इयत्तिका) इयति प्रदेशे भवा बाला (शकुन्तिका) कपिञ्जली (सका) सा (जघास) अत्ति (ते) तव (विषम्) व्याप्नोत्यङ्गानि यत्तत् (सो) सा। अत्राज्व्यत्ययेन आकारस्थाने ओकारादेशः। (चित्) अपि (नु) (न) (मराति) (नो) (वयम्) (मराम) (आरे) (अस्य) (योजनम्) (हरिष्ठाः) (मधु) मधुरमौषधम् (त्वा) त्वाम् (मधुला) माधुर्यप्रदा मधुविद्या (चकार) करोति ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्या ये विषहराः पक्षिणः सन्ति तान् संरक्ष्य तैर्विषं हारयेयुः ॥ ११ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - वैद्यांनी विष हरण करणाऱ्या पक्ष्यांचे पालन करून त्यांच्याकडून विष हरण करवावे. ॥ ११ ॥