वांछित मन्त्र चुनें

अग्ने॒ त्वम॒स्मद्यु॑यो॒ध्यमी॑वा॒ अन॑ग्नित्रा अ॒भ्यम॑न्त कृ॒ष्टीः। पुन॑र॒स्मभ्यं॑ सुवि॒ताय॑ देव॒ क्षां विश्वे॑भिर॒मृते॑भिर्यजत्र ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne tvam asmad yuyodhy amīvā anagnitrā abhy amanta kṛṣṭīḥ | punar asmabhyaṁ suvitāya deva kṣāṁ viśvebhir amṛtebhir yajatra ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। त्वम्। अ॒स्मत्। यु॒यो॒धि॒। अमी॑वाः। अन॑ग्निऽत्राः। अ॒भि। अम॑न्त। कृ॒ष्टीः। पुनः॑। अ॒स्मभ्य॑म्। सु॒वि॒ताय॑। दे॒व॒। क्षाम्। विश्वे॑भिः। अ॒मृते॑भिः। य॒ज॒त्र॒ ॥ १.१८९.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:189» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:10» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के दृष्टान्त से विद्वानों के गुणों को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (यजत्र) सङ्ग करते हुए (देव) कामना करनेवाले (अग्ने) ईश्वर के समान विद्वान् वैद्य जन ! (त्वम्) आप जो (अनग्नित्राः) ऐसे हैं कि यदि उनके साथ ज्वर न विद्यमान हो तो अविद्यमान ज्वर से शरीर की रक्षा करनेवाले हैं, वे (अमीवाः) रोग (कृष्टीः) मनुष्यों को (अभ्यमन्त) सब ओर से रुग्ण करते कष्ट देते हैं उनको (अस्मत्) हम लोगों से (युयोधि) अलग कर (पुनः) फिर (विश्वेभिः) समस्त (अमृतेभिः) अमृतरूप ओषधियों से (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (सुविताय) ऐश्वर्य प्राप्त होने के लिये (क्षाम्) भूमि के राज्य को प्राप्त कीजिये ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे ईश्वर वेदद्वारा अविद्यारूपी रोग से मनुष्यों को अलग करता है, वैसे अच्छे वैद्य मनुष्यों को रोगों से निवृत्त कर अमृतरूपी ओषधियों से बढ़ाकर ऐश्वर्य की प्राप्ति कराते हैं ॥ ३ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरदृष्टान्तेन विद्वद्गुणानाह ।

अन्वय:

हे यजत्र देवाग्ने वैद्यस्त्वं येऽनग्नित्रा अमीवा रोगाः कृष्टीरभ्यमन्त तानस्मद्युयोधि पुनर्विश्वेभिरमृतेभिरस्मभ्यं सुविताय क्षां भूराज्य प्राप्रय ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) ईश्वर इव विद्वन् (त्वम्) (अस्मत्) (युयोधि) पृथक् कुरु (अमीवाः) रोगाः (अनग्नित्राः) अविद्यमानज्वरेण रक्षकाः (अभ्यमन्त) अभितो रुजन्ति (कृष्टीः) मनुष्यान् (पुनः) (अस्मभ्यम्) (सुविताय) ऐश्वर्यप्राप्तये (देव) कामयमान (क्षाम्) भूमिं भूमिराज्यमात्रं वा (विश्वेभिः) सर्वैः (अमृतेभिः) अमृतात्मकैरोषधैः (यजत्र) सङ्गच्छमान ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेश्वरो वेदद्वारा विद्यारोगाज्जनान् पृथक् करोति तथा सद्वैद्या मनुष्यान् रोगेभ्यो निवर्त्त्य अमृतात्मकैरौषधैर्वर्द्धयित्वैश्वर्यं प्रापयन्ति ॥ ३ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा ईश्वर वेदाद्वारे अविद्यारूपी रोगांपासून माणसांना पृथक करतो तसे चांगले वैद्य मनुष्यांना रोगांपासून निवृत्त करून अमृतरूपी औषधी वाढवून ऐश्वर्याची प्राप्ती करवितात. ॥ ३ ॥