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पि॒तुं नु स्तो॑षं म॒हो ध॒र्माणं॒ तवि॑षीम्। यस्य॑ त्रि॒तो व्योज॑सा वृ॒त्रं विप॑र्वम॒र्दय॑त् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pituṁ nu stoṣam maho dharmāṇaṁ taviṣīm | yasya trito vy ojasā vṛtraṁ viparvam ardayat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पि॒तुम्। नु। स्तो॒ष॒म्। म॒हः। ध॒र्माण॑म्। तवि॑षीम्। यस्य॑। त्रि॒तः। वि। ओज॑सा। वृ॒त्रम्। विऽप॑र्वम्। अ॒र्दय॑त् ॥ १.१८७.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:187» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:6» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ग्यारह ऋचावाले एकसौ सतासी सूक्त का आरम्भ है। उसके आरम्भ से अन्न के गुणों को कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिसका (त्रितः) मन, वचन, कर्म से (वि, ओजसा) विविध प्रकार के पराक्रम से (विपर्वम्) विविध प्रकार के अङ्ग और उपाङ्गों से पूर्ण (वृत्रम्) स्वीकार करने योग्य धन को (अर्दयत्) प्राप्त करे उसके लिये (नु) शीघ्र (पितुम्) अन्न (महः) बहुत (धर्माणम्) धर्म करनेवाले और (तविषीम्) बल की मैं (स्तोषम्) प्रशंसा करूँ ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - जो बहुत अन्न को ले अच्छा संस्कार कर और उसके गुणों को जान यथायोग्य और व्यञ्जनादि पदार्थों के साथ मिलाके खाते हैं, वे धर्म के आचरण करनेवाले होते हुए शरीर और आत्मा के बल को प्राप्त होकर पुरुषार्थ से लक्ष्मी की उन्नति कर सकते हैं ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथान्नगुणानाह ।

अन्वय:

यस्य त्रितो व्योजसा विपर्वं वृत्रमर्दयत्तस्मै नु पितुं महो धर्माणं तविषीं चाहं स्तोषम् ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पितुम्) अन्नम् (नु) सद्यः (स्तोषम्) प्रशंसेयम् (महः) महत् (धर्माणम्) धर्मकारिणम् (तविषीम्) बलम् (यस्य) (त्रितः) मनोवाक्कर्मभ्यः (वि) विविधेऽर्थे (ओजसा) पराक्रमेण (वृत्रम्) वरणीयं धनम् (विपर्वम्) विविधैरङ्गोपाङ्गैः पूर्णम् (अर्दयत्) अर्दयेत् प्रापयेत् ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - ये बह्वन्नं गृहीत्वा सुसंस्कृत्यैतद्गुणान् विदित्वा यथायोग्यं द्रव्यान्तरेण संयोज्य भुञ्जते ते धर्माचरणाः सन्तः शरीरात्मबलं प्राप्य पुरुषार्थेन श्रियमुन्नेतुं शक्नुवन्ति ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अन्नाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती समजली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - जे बरेच खाद्यपदार्थ घेऊन ते संस्कारित करतात व त्याचे गुण जाणून यथायोग्यरीत्या व्यंजन तयार करतात ते धर्माचे आचरण करणारे असतात. ते शरीर व आत्म्याचे बल प्राप्त करून पुरुषार्थाने लक्ष्मी प्राप्त करू शकतात. ॥ १ ॥