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उ॒त न॑ ईं म॒रुतो॑ वृ॒द्धसे॑ना॒: स्मद्रोद॑सी॒ सम॑नसः सदन्तु। पृष॑दश्वासो॒ऽवन॑यो॒ न रथा॑ रि॒शाद॑सो मित्र॒युजो॒ न दे॒वाः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta na īm maruto vṛddhasenāḥ smad rodasī samanasaḥ sadantu | pṛṣadaśvāso vanayo na rathā riśādaso mitrayujo na devāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। नः॒। ई॒म्। म॒रुतः॑। वृ॒द्धऽसे॑नाः॒। स्मत्। रोद॑सी॒ इति॑। सऽम॑नसः। स॒द॒न्तु॒। पृष॑त्ऽअश्वासः। अ॒वन॑यः। न। रथाः॑। रि॒शाद॑सः। मि॒त्र॒ऽयुजः॑। न। दे॒वाः ॥ १.१८६.८

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:186» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पवन आदि के दृष्टान्त से विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) पवन (ईम्) जल को जैसे वैसे (वृद्धसेनाः) बढ़ी हुई प्रौढ़ तरुण प्रचण्ड बल वेगवाली जिनकी सेना वे (नः) हम लोगों को (सदन्तु) प्राप्त होवें (उत) और (समनसः) समान जिनका मन वे परोपकारी विद्वान् (स्मत्) ही (रोदसी) आकाश और पृथिवी को प्राप्त हों (पृषदश्वासः) पुष्ट जिनके घोड़ा वे विद्वान् जन वा (अवनयः) भूमि (रथाः) रमणीय यानों के (न) समान (रिशादसः) रिसहा शत्रुओं को नाश कराते और (मित्रयुजः) मित्रों के साथ संयोग रखते उन (देवाः) विद्वानों के (न) समान होते हैं ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - जिनकी वीर सेना जो समान मति रखनेवाले बड़े बड़े रथादि यान जिनके तीर (=पास) पृथिवी के समान क्षमाशील मित्रप्रिय विद्वान् जन सबका प्रिय आचरण करते हैं, वे प्रसन्न होते हैं ॥ ८ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ वाय्वादिदृष्टान्तेनोक्तविषयमाह।

अन्वय:

मरुत ईमिव वृद्धसेना नोऽस्मान् सदन्तूत समनसः स्मद्रोदसी सदन्तु पृषदश्वासोऽवनयो रथा न रिशादसो मित्रयुजो देवा न भवन्ति ॥ ८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) (नः) अस्मान् (ईम्) जलम् (मरुतः) वायवः (वृद्धसेनाः) वृद्धा प्रौढा सेना येषां ते (स्मत्) एव (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (समनसः) समानं मनो येषान्ते (सदन्तु) प्राप्नुवन्तु (पृषदश्वासः) पृषतः पृष्टाः पुष्टा अश्वा येषान्ते (अवनयः) भूमयः (न) इव (रथाः) रमणीयाः (रिशादसः) ये रिशाञ्छत्रून् दसन्ति नाशयन्ति ते (मित्रयुजः) ये मित्रैः सह युञ्जन्ति ते (न) इव (देवाः) विद्वांसः ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - ये वीरसेनाः समानमतयो बृहद्यानाः पृथिवीवत् क्षमाशीला मित्रप्रिया विद्वांसः सर्वप्रियमाचरन्ति ते प्रसन्ना भवन्ति ॥ ८ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्यांच्याजवळ वीरसेना, समान विचार बाळगणारे, मोठमोठी याने, पृथ्वीप्रमाणे क्षमाशील प्रिय मित्र, विद्वान लोक सर्वांना प्रिय वाटेल असे आचरण करतात ते प्रसन्न राहतात. ॥ ८ ॥