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आ नो॒ विश्व॒ आस्क्रा॑ गमन्तु दे॒वा मि॒त्रो अ॑र्य॒मा वरु॑णः स॒जोषा॑:। भुव॒न्यथा॑ नो॒ विश्वे॑ वृ॒धास॒: कर॑न्त्सु॒षाहा॑ विथु॒रं न शव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no viśva āskrā gamantu devā mitro aryamā varuṇaḥ sajoṣāḥ | bhuvan yathā no viśve vṛdhāsaḥ karan suṣāhā vithuraṁ na śavaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। विश्वे॑। आस्क्राः॑। ग॒म॒न्तु॒। दे॒वाः। मि॒त्रः। अ॒र्य॒मा। वरु॑णः। स॒ऽजोषाः॑। भुव॑न्। यथा॑। नः॒। विश्वे॑। वृ॒धासः॑। कर॑न्। सु॒ऽसहा॑। वि॒थु॒रम्। न। शवः॑ ॥ १.१८६.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:186» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:4» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! वैसे (मित्रः) प्राण के समान वर्त्तमान (अर्य्यमा) न्यायकारी (वरुणः) अतिश्रेष्ठ (सजोषाः) समान प्रीति का सेवन रखनेवाला और (आस्क्राः) शत्रुबल को पादाक्रान्त करने पाद तले दवानेवाले (विश्वे) समस्त (देवाः) विद्वान् जन (नः) हम लोगों को (आ, गमन्तु) सब ओर से प्राप्त होवें कि (यथा) जैसे (विश्वे) समस्त वे विद्वान् (नः) हमारा (वृधासः) सुख बढ़ानेवाले (भुवन्) होवें और (सुषाहा) सुन्दर जिसका सहन क्षमा शान्तिपन वह जन (विथुरम्) व्यथा पीड़ा देते हुए पदार्थ के (न) समान शीघ्र (शवः) बल (करन्) करें ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जिस मार्ग से विद्वान् जन चलें, उसीसे सर्व लोग चलें। जैसे आप्त शास्त्रज्ञ विद्वान् जन औरों के सुख-दुःखों को अपने तुल्य जानते हैं, वैसे ही सबको होना चाहिये ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मनुष्यास्तथा मित्रोर्यमा वरुणस्सजोषा आस्क्रा विश्वे देवा नोऽस्मानागमन्तु यथा विश्वे ते नो वृधासो भुवन्त्सुषाहा विथुरं न शवः करन् ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (नः) (विश्वे) (आस्क्राः) शत्रुबलस्य क्रमितारः (गमन्तु) समन्तात् प्राप्नुवन्तु (देवाः) विद्वांसः (मित्रः) प्राणवद्वर्त्तमानः (अर्यमा) न्यायकारी (वरुणः) अतिश्रेष्ठः (सजोषाः) समानप्रीतिसेवनः (भुवन्) भवेयुः (यथा) (नः) अस्मान् (विश्वे) सर्वे (वृधासः) सुखवर्द्धकाः (करन्) कुर्वन्तु (सुषाहा) सुष्ठुसाहस्सहनं यस्य सः (विथुरम्) (न) इव (शवः) बलम् ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। येन मार्गेण विद्वांसो गच्छेयुस्तस्मिन्नेव सर्वे गच्छन्तु यथाप्ता स्वात्मवदन्येषां सुखदुःखानि जानन्ति तथैव सर्वैर्भवितव्यम् ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या मार्गाने विद्वान लोक जातात त्याच मार्गाने सर्व लोकांनी जावे. जसे आप्त, शास्त्रज्ञ, विद्वान लोक इतरांचे सुख-दुःख आपल्याप्रमाणे मानतात तसे सर्वांनी वागावे. ॥ २ ॥