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भूरिं॒ द्वे अच॑रन्ती॒ चर॑न्तं प॒द्वन्तं॒ गर्भ॑म॒पदी॑ दधाते। नित्यं॒ न सू॒नुं पि॒त्रोरु॒पस्थे॒ द्यावा॒ रक्ष॑तं पृथिवी नो॒ अभ्वा॑त् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhūriṁ dve acarantī carantam padvantaṁ garbham apadī dadhāte | nityaṁ na sūnum pitror upasthe dyāvā rakṣatam pṛthivī no abhvāt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भूरि॑म्। द्वे इति॑। अच॑रन्ती॒ इति॑। चर॑न्तम्। प॒त्ऽवन्तम्। गर्भ॑म्। अ॒पदी॒ इति॑। द॒धा॒ते॒ इति॑। नित्य॑म्। न। सू॒नुम्। पि॒त्रोः। उ॒पऽस्थे॑। द्यावा॑। रक्ष॑तम्। पृ॒थि॒वी॒ इति॑। नः॒। अभ्वा॑त् ॥ १.१८५.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:185» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:2» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (द्यावापृथिवी) द्यावापृथिवी के समान वर्त्तमान मातापितरो ! जैसे (अचरन्ती) इधर-उधर अपनी कक्षा को छोड़कर न जानेवाले (अपदी) पैरों से रहित (द्वे) दोनों द्यावापृथिवी (भूरिम्) बहुत (पद्वन्तम्) पगवाले (चरन्तम्) चलते हुए (गर्भम्) कार्य्यरूप जगत् को (पित्रोः) माता-पिता के (उपस्थे) गोद में नित्य (सूनुम्) पुत्र के (न) समान (दधाते) धारण करते हैं वैसे (अभ्वात्) मिथ्याचरण से उत्पन्न हुए दुःख से (नः) हम लोगों की (रक्षतम्) रक्षा करो ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे भूमि सूर्य दृढ़ होते हुए स्थावर, जङ्गम, चर, अचर, जगत् को बहुत प्रकार से पाल के बढ़ाते हैं, वैसे माता, पिता, अतिथि, आचार्य्य, सन्तान और शिष्यों की अच्छे प्रकार रक्षा कर विद्या और उत्तम शिक्षा से बढ़ावें ॥ २ ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

द्यावापृथिवी द्वारा विश्वधारण

पदार्थान्वयभाषाः - १. ये द्युलोकस्थ पिण्ड व पृथिवीलोक अत्यन्त तीव्र गति में होते हुए भी स्थिर से दीखते हैं [अचरन्ती] । इन द्युलोक व पृथिवीलोक के कोई पाँव नहीं हैं [अपदी] । (अचरन्)ती = अविचल होते हुए, (अपदी) = पाँव से रहित (द्वे) = ये दोनों द्यावापृथिवी (भूरिम्) = बहुत संख्यावाले चरन्तम्गतिशील, (पद्वन्तम्) = पाँवोंवाले (गर्भम्) = अपने अन्दर ठहरे हुए प्राणियों को दधाते धारण करते हैं। ये दो होते हुए बहुतों का धारण कारण करते हैं। अविचलित होते हुए चलनेवालों का धारण करते हैं और बिना पाँववाले पाँववालों का धारण करते हैं । २. उसी प्रकार धारण करते हैं (न) = जैसे कि (पित्रोः उपस्थे) = माता-पिता की गोद में स्थित (नित्यं सूनुम्) = औरस पुत्र को माता-पिता धारण करते हैं। जैसे माता-पिता पुत्र को सुरक्षित करते हैं उसी प्रकार द्यावापृथिवी-द्युलोक व पृथिवीलोक (नः) = हमें (अभ्वात्) = बड़ी आपत्ति [calamity] से (रक्षतम्) = रक्षित करें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ – द्यावापृथिवी सब प्राणियों के माता-पिता के समान हैं। वे उन्हें आपत्तियों से बचाते हैं। द्यावापृथिवी की सम्मिलित क्रिया से ही अन्नादि का उत्पादन होकर हमारा रक्षण होता है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे द्यावापृथिवी द्यावापृथिवीव वर्त्तमानौ मातापितरौ यथाऽचरन्ती अपदी द्वे भूरिं पद्वन्तं चरन्तं गर्भं पित्रोरुपस्थे नित्यं सूनुं न दधाते तथाऽभ्वान्नो रक्षतम् ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भूरिम्) बहुम् (द्वे) (अचरन्ती) इतस्ततः स्वकक्षां विहाय गतिरहिते (चरन्तम्) गच्छन्तम् (पद्वन्तम्) बहवः पादा विद्यन्ते यस्मिँस्तम् (गर्भम्) कार्य्याख्यम् (अपदी) अविद्यमानपादे (दधाते) (नित्यम्) (न) इव (सूनुम्) (पित्रोः) (उपस्थे) (द्यावा) द्यौः (रक्षतम्) (पृथिवी) भूमिः (नः) अस्मान् (अभ्वात्) असत्याचरणजन्याद्दुःखात् ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा भूमिसूर्यौ दृढौ सन्तौ स्थावरजङ्गमं बहुना प्रकारेण पालयित्वा वर्द्धयतस्तथा मातापितरावतिथ्याऽऽचार्य्यौ च सन्तानाञ्छिष्याँश्च संरक्ष्य विद्यासुशिक्षाभ्यां वर्द्धयेताम् ॥ २ ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The two, heaven and earth, undeviating from their nature, character, law and action, and keeping to their course without moving on legs, bear, nourish and sustain like a foetus this great, moving world of humans and animals. May the heaven and earth always protect us from sin and evil like a child in the lap of parents.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The duties of parents, pupils and sons are defined.

अन्वय:

Footless and motionless heaven and earth sustain numerous and footed creatures and people, like a son who is nursed on the lap of his parents. O parents ! like the heaven and the earth, save us from the misery caused by false dealings.

भावार्थभाषाः - The earth and sun are firm, and they sustain and make grow the animate. Same way, it is the duty of father and mother as well as of the guest and preceptor (Acharya) to protect their children and pupils and make them grow with wisdom and good education.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे भूमी, सूर्य दृढ असून, स्थावर, जंगम, चर, अचर जगाला निरनिराळ्या प्रकारे वाढवितात तसे माता, पिता, अतिथी, आचार्य यांनी संतान व शिष्यांचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करून विद्या व उत्तम शिक्षणाने उन्नत करावे. ॥ २ ॥