वांछित मन्त्र चुनें

अता॑रिष्म॒ तम॑सस्पा॒रम॒स्य प्रति॑ वां॒ स्तोमो॑ अश्विनावधायि। एह या॑तं प॒थिभि॑र्देव॒यानै॑र्वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

atāriṣma tamasas pāram asya prati vāṁ stomo aśvināv adhāyi | eha yātam pathibhir devayānair vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अता॑रिष्म। तम॑सः। पा॒रम्। अ॒स्य। प्रति॑। वा॒म्। स्तोमः॑। अ॒श्वि॒नौ॒। अ॒धा॒यि॒। आ। इ॒ह। या॒त॒म्। प॒थिऽभिः॑। दे॒व॒ऽयानैः॑। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१८४.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:184» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:1» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:6


0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापकोपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विनौ) विशेष उपदेश देनेवाले ! (इह) इस जानने योग्य व्यवहार में जो (स्तोमः) प्रशंसा (वाम्) तुम दोनों के (प्रति) प्रति (अधायि) धारण की गई उससे (अस्य) इस (तमसः) अविद्यान्धकार के (पारम्) पार को (अतारिष्म) पहुँचें जैसे तुम (देवयानैः) आप्त विद्वान् जिन में जाते हैं उन (पथिभिः) मार्गों से (इषम्) इष्ट सुख (वृजनम्) शारीरिक और आत्मिक बल तथा (जीरदानुम्) जीवात्मा को (आ, यातम्) प्राप्त होओ वैसे इसको हम भी (विद्याम) प्राप्त होवें ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - वे ही विद्या के परमपार मनुष्यों को पहुँचा सकते हैं, जो धर्म मार्ग से ही चलते हैं और यथार्थ के उपदेशक भी हैं ॥ ६ ॥ इस सूक्त में अध्यापक और उपदेशकों के लक्षणों को कहने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति समझनी चाहिये ॥यह एकसौ चौरासीवाँ सूक्त और प्रथम वर्ग समाप्त हुआ ॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्राणापान की निरन्तर साधना

पदार्थान्वयभाषाः - इस मन्त्र की व्याख्या १८३।६ पर द्रष्टव्य है ।
अन्य संदर्भ: विशेष- सम्पूर्ण सूक्त प्राणसाधना के महत्त्व का प्रतिपादन करता है। प्राणसाधना पिण्ड में से मस्तिष्क व शरीर दोनों सुन्दर बनते हैं। ब्रह्माण्ड में ये मस्तिष्क व शरीर द्यावापृथिवी हैं। अगले सूक्त में इन द्यावापृथिवी का ही वर्णन है -
0 बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकोपदेशकविषयमाह ।

अन्वय:

हे अश्विनाविह यः स्तोमो वां प्रत्यधायि तेनास्य तमसस्पारमतारिष्म यथा युवां देवयानैः पथिभिरिषं वृजनं जीरदानुमायातं तथैतद्वयं विद्याम ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अतारिष्म) तरेम (तमसः) अविद्याऽन्धकारस्य (पारम्) (अस्य) (प्रति) (वाम्) युवाम् (स्तोमः) प्रशंसा (अश्विनौ) यौ व्युपदेशकौ (अधायि) ध्रियते (आ) (इह) अस्मिन् विज्ञातव्ये व्यवहारे (यातम्) आगच्छतम् (पथिभिः) (देवयानैः) देवा यान्ति येषु तैः (विद्याम) (इषम्) इष्टं सुखम् (वृजनम्) शरीरात्मबलम् (जीरदानुम्) जीवात्मानम् ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - त एव विद्यायाः परंपारं जनान् गमयितुं शक्नुवन्ति ये धर्म्ममार्गेणैव गच्छन्ति यथार्थोपदेष्टारश्च भवन्ति ॥ ६ ॥अस्मिन् सूक्तेऽध्यापकोपदेशकलक्षणोक्तत्वादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुरशीत्युत्तरं शततमं सूक्तं प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Ashvins, lords of light and love, let us swim across this darkness and ignorance to light and knowledge. Hence this song of adoration is sung in homage to you. Come to us here by the paths of divinity and we would be blest with food for life, the right path and the light of Divinity to swim across to Eternity.
0 बार पढ़ा गया

आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The learners of right path and the teachers of the same deliver goods.

अन्वय:

O teachers and preachers of the highest order with your help, may we get over the darkness of ignorance through the praises addressed to you. Come hither by the paths treaded by the truthful and enlightened persons. Thus we may attain the desired happiness, physical and spiritual strength, and get the knowledge of the soul.

भावार्थभाषाः - Those persons alone can take people to the other end of the knowledge who, always tread on the path of righteousness, and are genuine preachers of truth.
0 बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - तेच विद्येच्या पैलतीरी पोहोचू शकतात जे धर्ममार्गावर चालतात व यथार्थ उपदेशकही असतात. ॥ ६ ॥