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कदु॒ प्रेष्ठा॑वि॒षां र॑यी॒णाम॑ध्व॒र्यन्ता॒ यदु॑न्निनी॒थो अ॒पाम्। अ॒यं वां॑ य॒ज्ञो अ॑कृत॒ प्रश॑स्तिं॒ वसु॑धिती॒ अवि॑तारा जनानाम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kad u preṣṭāv iṣāṁ rayīṇām adhvaryantā yad unninītho apām | ayaṁ vāṁ yajño akṛta praśastiṁ vasudhitī avitārā janānām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कत्। ऊँ॒ इति॑। प्रेष्ठौ॑। इ॒षाम्। र॒यी॒णाम्। अ॒ध्व॒र्यन्ता॑। यत्। उ॒त्ऽनि॒नी॒थः। अ॒पाम्। अ॒यम्। वा॒म्। य॒ज्ञः। अ॒कृ॒त॒। प्रऽश॑स्तिम्। वसु॑धिती॒ इति॑ वसु॑ऽधिती। अवि॑तारा। ज॒ना॒ना॒म् ॥ १.१८१.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:181» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब एकसौ इक्यासी सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अश्विपद वाच्यों के दृष्टान्त से अध्यापक और उपदेशक के गुणों का वर्णन करते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इषाम्) अन्न और (रयीणाम्) धनादि पदार्थों के विषय (प्रेष्ठौ) अत्यन्त प्रीतिवाले (जनानाम्) मनुष्यों की (अवितारा) रक्षा और (वसुधिती) धनादि पदार्थों को धारण करनेवाले अध्यापक और उपदेशको ! तुम (कत्, उ) कभी (अध्वर्यन्ता) अपने को यज्ञ की इच्छा करते हुए (यत्) जो (अपाम्) जल वा प्राणों की (उत्, निनीथः) उन्नति को पहुँचाते अर्थात् अत्यन्त व्यवहार में लाते हैं सो (अयम्) यह (वाम्) तुम्हारा (यज्ञः) द्रव्यमय वा वाणीमय यज्ञ (प्रशस्तिम्) प्रशंसा को (अकृत) करता है ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - जब विद्वान् जन मनुष्यों को विद्याओं की प्राप्ति कराते हैं, तब वे सबके पियारे ऐश्वर्यवान् होते हैं। जब पढ़ने और पढ़ाने से और सुगन्धादि पदार्थों के होम से जीवात्मा और जलों की शुद्धि कराते हैं, तब प्रशंसा को प्राप्त होते हैं ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाश्विदृष्टान्तेनाध्यापकोपदेशकगुणानाह ।

अन्वय:

हे इषां रयीणां प्रेष्ठौ जनानामवितारा वसुधिती अध्यापकोपदेशकौ युवां कदु कदाचिददध्वर्यन्ता यदपामुन्निनीथः सोऽयं वां यज्ञो प्रशस्तिमकृत ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कत्) कदा (उ) (प्रेष्ठौ) प्रीणीत इति प्रियौ इगुपधेति कः। अतिशयेन प्रियौ प्रेष्ठौ। (इषाम्) अन्नानाम् (रयीणाम्) (अध्वर्यन्ता) आत्मनोऽध्वरमिच्छन्तौ (यत्) (उन्निनीथः) उत्कर्षं प्राप्नुथः (अपाम्) जलानां प्राणानां वा (अयम्) (वाम्) युवयोः (यज्ञः) (अकृत) करोति (प्रशस्तिम्) प्रशंसाम् (वसुधिती) यौ वसूनि धरतस्तौ (अवितारा) रक्षितारौ (जनानाम्) मनुष्याणाम् ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - यदा विद्वांसो मनुष्यान् विद्या नयन्ति तदा ते सर्वप्रिया ऐश्वर्यवन्तो भवन्ति। यदाऽध्ययनाऽध्यापनेन सुगन्ध्यादिहोमेन च जीवात्मनो जलानि च शोधयन्ति तदा प्रशंसामाप्नुवन्ति ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अश्विच्या दृष्टान्ताने अध्यापक व उपदेशकांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची संगती मागच्या सूक्ताबरोबर समजली पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - जेव्हा विद्वान लोक माणसांना विद्येची प्राप्ती करवितात तेव्हा ते सर्वांचे प्रिय बनतात व ऐश्वर्यवान होतात. जेव्हा अध्ययन अध्यापनाने व सुगंधी पदार्थ होमात घालण्याने जीवात्म्याची व जलाची शुद्धी करवितात, तेव्हा ते प्रशंसेस पात्र ठरतात. ॥ १ ॥