यद्ध॒ स्या त॑ इन्द्र श्रु॒ष्टिरस्ति॒ यया॑ ब॒भूथ॑ जरि॒तृभ्य॑ ऊ॒ती। मा न॒: कामं॑ म॒हय॑न्त॒मा ध॒ग्विश्वा॑ ते अश्यां॒ पर्याप॑ आ॒योः ॥
yad dha syā ta indra śruṣṭir asti yayā babhūtha jaritṛbhya ūtī | mā naḥ kāmam mahayantam ā dhag viśvā te aśyām pary āpa āyoḥ ||
यत्। ह॒। स्या। ते॒। इ॒न्द्र॒। श्रु॒ष्टिः। अस्ति॑। यया॑। ब॒भूथ॑। ज॒रि॒तृऽभ्यः॑। ऊ॒ती। मा। नः॒। काम॑म्। म॒हय॑न्तम्। आ। ध॒क्। विश्वा॑। ते॒। अ॒श्या॒म्। परि॑। आपः॑। आ॒योः ॥ १.१७८.१
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब एकसौ अठहत्तरवें सूक्त का आरम्भ है। उसमें आरम्भ से सेनापति के गुणों का वर्णन करते हैं ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सेनापतिगुणानाह।
हे इन्द्र यद्या स्या ते श्रुष्टिरस्ति यया त्वं जरितृभ्य उपदेष्टा बभूथ तयोती नो महयन्तं कामं मा धक्। ते हायोः या आपस्ताः विश्वापर्यश्याम् ॥ १ ॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात सेनापतीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥