वांछित मन्त्र चुनें

सोमा॑सो॒ न ये सु॒तास्तृ॒प्तांश॑वो हृ॒त्सु पी॒तासो॑ दु॒वसो॒ नास॑ते। ऐषा॒मंसे॑षु र॒म्भिणी॑व रारभे॒ हस्ते॑षु खा॒दिश्च॑ कृ॒तिश्च॒ सं द॑धे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

somāso na ye sutās tṛptāṁśavo hṛtsu pītāso duvaso nāsate | aiṣām aṁseṣu rambhiṇīva rārabhe hasteṣu khādiś ca kṛtiś ca saṁ dadhe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोमा॑सः। न। ये। सु॒ताः। तृ॒प्तऽअं॑शवः। हृ॒त्ऽसु। पी॒तासः॑। दु॒वसः॑। न। आस॑ते। आ। ए॒षा॒म्। अंसे॑षु। र॒म्भिणी॑ऽइव। र॒र॒भे॒। हस्ते॑षु। खा॒दिः। च॒। कृ॒तिः। च॒। सम्। द॒धे॒ ॥ १.१६८.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:168» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - मैं (ये) जो पवनों के समान विद्वान् (तृप्तांशवः) जिनसे सूर्य किरण आदि पदार्थ तृप्त होते और वे (सुताः) कूट-पीट निकाले हुए (सोमासः) सोमादि ओषधि रस (हृत्सु) हृदयों में (पीतासः) पीये हुए हों उनके (न) समान वा (दुवसः) सेवन करनेवालों के (न) समान (आसते) बैठते स्थिर होते (एषाम्) इनके (अंसेषु) भुजस्कन्धों में (रम्भिणीव) जैसे प्रत्येक काम का आरम्भ करनेवाली स्त्री संलग्न हो वैसे (आ, रारभे) संलग्न होता हूँ। और जिन्होंने (हस्तेषु) हाथों में (खादिः) भोजन (च) और (कृतिः) क्रिया (च) भी धारण की है उनके साथ सब क्रियाओं को (सम्, दधे) अच्छे प्रकार धारण करता हूँ ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सज्जन ओषधियों के समान दुष्ट शिक्षा और दुष्टाचार के विनाश करने, सेवकों के समान सुख देने और पतिव्रता स्त्री के समान प्रिय आचरण करनेवाले क्रियाकुशल हैं, वे इस सृष्टि में सब विद्याओं के अच्छे धारण करने यथायोग्य कामों में वर्त्ताने को योग्य होते हैं ॥ ३ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

अहं ये सुतास्तृप्तांशवः सोमासो हृत्सु पीतासो न दुवसो न आसत एषामंसेषु रम्भिणीव आरारभे। यैर्हस्तेषु खादिश्च कृतिश्च ध्रियते तैस्सह सर्वाः सत्क्रियाः सन्दधे ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमासः) सोमाद्योषधिरसाः (न) इव (ये) मरुत इव विद्वांसः (सुताः) निस्सारिताः (तृप्तांशवः) तृप्ता अंशवो येभ्यस्ते (हृत्सु) हृदयेषु (पीतासः) पीताः (दुवसः) परिचारकाः (न) इव (आसते) (आ) (एषाम्) (अंसेषु) भुजस्कन्धेषु (रम्भिणीव) यथाऽऽरम्भिका गृहकार्येषु चतुरा स्त्री (रारभे) रेभे (हस्तेषु) करेषु (खादिः) भोजनम् (च) (कृतिः) क्रिया (च) (सम्) सम्यक् (दधे) ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये सज्जना ओषधीवत्कुशिक्षादुष्टाचारविनाशकाः परिचारकवत् सुखप्रदाः पतिव्रतास्त्रीवत् प्रियाचारिणः क्रियाकुशलाः सन्ति तेऽत्र सृष्टौ सर्वा विद्याः संधातुमर्हन्ति ॥ ३ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे चांगले पुरुष औषधीप्रमाणे दुष्ट शिक्षण व दुष्टाचाराचा विनाश करणारे असतात, सेवकाप्रमाणे सुख देणारे असून पतिव्रता स्त्रियांप्रमाणे प्रिय आचरण करणारे व क्रियाकुशल असतात ते या सृष्टीत सर्व विद्या चांगल्या प्रकारे धारण करतात व यथायोग्य क्रिया करणारे असतात. ॥ ३ ॥