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परा॑ शु॒भ्रा अ॒यासो॑ य॒व्या सा॑धार॒ण्येव॑ म॒रुतो॑ मिमिक्षुः। न रो॑द॒सी अप॑ नुदन्त घो॒रा जु॒षन्त॒ वृधं॑ स॒ख्याय॑ दे॒वाः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

parā śubhrā ayāso yavyā sādhāraṇyeva maruto mimikṣuḥ | na rodasī apa nudanta ghorā juṣanta vṛdhaṁ sakhyāya devāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परा॑। शु॒भ्राः। अ॒यासः॑। य॒व्या। सा॒धा॒र॒ण्याऽइ॑व। म॒रुतो॑। मि॒मि॒क्षुः॒। न। रो॒द॒सी इति॑। अप॑। नु॒द॒न्त॒। घो॒राः। जु॒षन्त॑। वृध॑म्। स॒ख्याय॑। दे॒वाः ॥ १.१६७.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:167» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (शुभ्राः) स्वच्छ (अयासः) शीघ्रगामी (मरुतः) पवन (यव्या) मिली न मिली हुई चाल से (रोदसी) आकाश और पृथिवी को (मिमिक्षुः) सींचते और (घोराः) बिजुली के योग से भयङ्कर होते हुए (न, परा, अप, नुदन्त) उनको परावृत्त नहीं करते, उलट नहीं देते वैसे (देवाः) विद्वान् जन (वृधम्) वृद्धि को (सख्याय) मित्रता के लिये (साधारण्येव) साधारण क्रिया से जैसे वैसे (जुषन्त) सेवें ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे वायु और बिजुली के योग से उत्पन्न हुई वर्षा अनेक ओषधियों को उत्पन्न कर सब प्राणियों को जीवन देकर दुःखों को दूर करती है वा जैसे उत्तम पतिव्रता स्त्री पति को आनन्दित करती है, वैसे ही विद्वान् जन विद्या और उत्तम शिक्षा की वर्षा से और धर्म के सेवन से सब मनुष्यों को आह्लादित करें ॥ ४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

यथा शुभ्रा अयासो मरुतो यव्या रोदसी मिमिक्षुः। घोराः सन्तो न परापनुदन्त तथा देवा वृधं सख्याय साधारण्येव जुषन्त ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (परा) (शुभ्राः) स्वच्छाः (अयासः) शीघ्रगामिनः (यव्या) मिश्रिताऽमिश्रितगत्या (साधारण्येव) यथा साधारणया (मरुतः) वायवः (मिमिक्षुः) सिञ्चन्ति (न) निषेधे (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अप) (नुदन्त) दूरीकुर्वन्ति (घोराः) विद्युद्योगेन भयङ्कराः (जुषन्त) सेवन्ताम् (वृधम्) वर्द्धनम् (सख्याय) मित्राणां भावाय (देवाः) विद्वांसः ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा वायुविद्युद्योगजन्या वृष्टिरनेका ओषधीरुत्पाद्य सर्वान् प्राणिनो जीवयित्वा दुःखानि दूरीकरोति यथोत्तमा पतिव्रता स्त्री पतिमाह्लादयति तथैव विद्वांसो विद्यासुशिक्षावर्षणेन धर्मसेवया च सर्वान् मनुष्यानाह्लादयेयुः ॥ ४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी वायू व विद्युतच्या योगाने उत्पन्न झालेली वृष्टी अनेक औषधांना उत्पन्न करून सर्व प्राण्यांना जीवन देऊन दुःख दूर करते, जशी उत्तम पतिव्रता स्त्री पतीला आनंदित करते तसे विद्वान लोकांनी विद्या व उत्तम शिक्षणाच्या वर्षावाने व धर्माच्या सेवनाने सर्व माणसांना आह्लादित करावे. ॥ ४ ॥