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मि॒म्यक्ष॒ येषु॒ सुधि॑ता घृ॒ताची॒ हिर॑ण्यनिर्णि॒गुप॑रा॒ न ऋ॒ष्टिः। गुहा॒ चर॑न्ती॒ मनु॑षो॒ न योषा॑ स॒भाव॑ती विद॒थ्ये॑व॒ सं वाक् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mimyakṣa yeṣu sudhitā ghṛtācī hiraṇyanirṇig uparā na ṛṣṭiḥ | guhā carantī manuṣo na yoṣā sabhāvatī vidathyeva saṁ vāk ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मि॒म्यक्ष॑। येषु॑। सुऽधि॑ता। घृ॒ताची॑। हिर॑ण्यऽनिर्निक्। उप॑रा। न। ऋ॒ष्टिः। गुहा॑। चर॑न्ती। मनु॑षः। न। योषा॑। स॒भाऽव॑ती। वि॒द॒थ्या॑ऽइव। सम्। वाक् ॥ १.१६७.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:167» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! आप (येषु) जिनमें (घृताची) जल को शीतलता से छोड़नेवाली रात्रि के समान वा (सुधिता) अच्छे प्रकार धारण की हुई (उपरा) ऊपरली दिशा के (न) समान वा (ऋष्टिः) प्रत्येक पदार्थ को प्राप्त करानेवाली (हिरण्यनिर्णिक्) जो सुवर्ण से पुष्टि होती और (गुहा, चरन्ती) गुप्त स्थलों में विचरती हुई (मनुषः) मनुष्य की (योषा) स्त्री (न) उसके समान वा (विदथ्येव) संग्राम वा विज्ञानों में हुई क्रिया आदि के समान (सभावती) सभा सम्बन्धिनी (वाक्) वाणी है उसको (सम्, मिम्यक्ष) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो मनुष्य सत्य-असत्य के निर्णय के लिये सब शुभ, गुण, कर्म स्वभाववाली विद्या सुशिक्षायुक्त शास्त्रज्ञ धर्मात्मा विद्वानों की वाणी को प्राप्त होते हैं, वे बहुत ऐश्वर्यवान् होते हुए दिशाओं में सुन्दर कीर्त्ति को प्राप्त होते हैं ॥ ३ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे विद्वन् त्वं येषु घृताचीव सुधिता उपरा न ऋष्टिर्हिरण्यनिर्णिग्गुहा चरन्ती मनुषो योषा न विदथ्येव सभावती वागस्ति तां सं मिम्यक्ष ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मिम्यक्ष) प्राप्नुहि (येषु) (सुधिता) सुष्ठु धृता (घृताची) या घृतमुदकमञ्चति सा रात्री। घृताचीति रात्रिना०। निघं० १। ७। (हिरण्यनिर्णिक्) या हिरण्येन निर्णेनेक्ति पुष्णाति सा (उपरा) उपरिस्था दिक्। उपरा इति दिङ्ना०। निघं० १। ६। (न) इव (ऋष्टिः) प्रापिका (गुहा) गुहायाम् (चरन्ती) गच्छन्ती (मनुषः) मनुषस्य (न) इव (योषा) (सभावती) सभासम्बन्धी (विदथ्येव) विदथेषु संग्रामेषु विज्ञानेषु भवेव (सम्) (वाक्) वाणी ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये मनुष्याः सत्याऽसत्यनिर्णयाय सर्वशुभगुणकर्मस्वभावां विद्यासुशिक्षायुक्तामाप्तवाणीं प्राप्नुवन्ति ते बह्वैश्वर्याः सन्तो दिक्षु सुकीर्त्तयो भवन्ति ॥ ३ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जी माणसे सत्य-असत्याच्या निर्णयासाठी सर्व शुभ, गुण, स्वभावाची विद्या, सुशिक्षणयुक्त शास्त्रज्ञ धर्मात्मा विद्वानांच्या वाणींना प्राप्त करतात, ते ऐश्वर्यवान होतात व त्यांची दिगदिगंतरी कीर्ती होते. ॥ ३ ॥