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तन्नु वो॑चाम रभ॒साय॒ जन्म॑ने॒ पूर्वं॑ महि॒त्वं वृ॑ष॒भस्य॑ के॒तवे॑। ऐ॒धेव॒ याम॑न्मरुतस्तुविष्वणो यु॒धेव॑ शक्रास्तवि॒षाणि॑ कर्तन ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tan nu vocāma rabhasāya janmane pūrvam mahitvaṁ vṛṣabhasya ketave | aidheva yāman marutas tuviṣvaṇo yudheva śakrās taviṣāṇi kartana ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। नु। वो॒चा॒म॒। र॒भ॒साय॑। जन्म॑ने। पूर्व॑म्। म॒हि॒त्वम्। वृ॒ष॒भस्य॑। के॒तवे॑। ऐ॒धाऽइ॑व। याम॑न्। म॒रु॒तः॒। तु॒वि॒ऽस्व॒णः॒। यु॒धाऽइ॑व। श॒क्राः॒। त॒वि॒षाणि॑। क॒र्त॒न॒ ॥ १.१६६.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:166» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ द्वितीयाष्टक के चतुर्थाध्याय और एकसौ छियासठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके आरम्भ से ही मरुच्छब्दार्थप्रतिपाद्य विद्वानों के गुणों को कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (तुविष्वणः) बहुत प्रकार के शब्दोंवाले (शक्राः) शक्तिमान् (मरुतः) मनुष्यो ! तुम्हारे प्रति (वृषभस्य) श्रेष्ठ सज्जन का (रभसाय) वेगयुक्त अर्थात् प्रबल (केतवे) विज्ञान (जन्मने) जो उत्पन्न हुआ उसके लिये जो (पूर्वम्) पहिला (महित्वम्) माहात्म्य (तत्) उसको हम (वोचाम) कहें उपदेश करें, तुम (ऐधवे) काष्ठों के समान वा (यामन्) मार्ग में (युधेव) युद्ध के समान अपने कर्मों से (तविषाणि) बलों को (नु) शीघ्र (कर्त्तन) करो ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। विद्वान् जन जिज्ञासु जनों के प्रति वर्त्तमान जन्म और पूर्व जन्मों के सञ्चित कर्मों के निमित्त ज्ञान को उनके कार्यों को देख कर उपदेश करें। और जैसे मनुष्यों के ब्रह्मचर्य और जितेन्द्रियत्वादि गुणों से शरीर और आत्मबल पूरे हों, वैसे करें ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मरुच्छब्दार्थप्रतिपाद्यविदुषां गुणानाह ।

अन्वय:

हे तुविष्वणः शक्रा मरुतो युष्मान् प्रति वृषभस्य रभसाय केतवे जन्मने यत्पूर्वं महित्वं तद्वयं वोचाम यूयमैधेव यामन् युधेव तविषाणि निजकर्मभिर्नु कर्त्तन ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) (नु) सद्यः (वोचाम्) उपदिशेम (रभसाय) वेगयुक्ताय (जन्मने) जाताय (पूर्वम्) (महित्वम्) महेर्महतो भावम् (वृषभस्य) श्रेष्ठस्य (केतवे) विज्ञानाय (ऐधेव) ऐधैः काष्ठैरिव (यामन्) यामनि मार्गे (मरुतः) मनुष्याः (तुविष्वणः) तुविर्बहुविधः स्वनो येषान्ते। अत्र व्यत्ययेनैकवचनम्। (युधेव) युद्धेनेव (शक्राः) शक्तिमन्तः (तविषाणि) बलानि (कर्त्तन) कुरुत ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। विद्वांसो जिज्ञासून् प्रति वर्त्तमानजन्मनां प्राग्जन्मनाञ्च सञ्चितनिमित्तज्ञानं कार्यं दृष्ट्वोपदिशेयुः। यथा मनुष्याणां ब्रह्मचर्यजितेन्द्रियत्वादिभिः शरीरात्मबलानि पूर्णानि स्युस्तथा कुरुतेति च ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात मरुत शब्दार्थाने विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. विद्वान लोकांनी जिज्ञासू लोकांना वर्तमान जन्म व पूर्व जन्माच्या संचित कर्मानिमित्त ज्ञान त्यांचे कार्य पाहून उपदेश करावा व माणसाचे ब्रह्मचर्य व जितेंद्रियता इत्यादी गुणांनी शरीर व आत्मबल पूर्ण होईल असे करावे. ॥ १ ॥