पाक॑: पृच्छामि॒ मन॒सावि॑जानन्दे॒वाना॑मे॒ना निहि॑ता प॒दानि॑। व॒त्से ब॒ष्कयेऽधि॑ स॒प्त तन्तू॒न्वि त॑त्रिरे क॒वय॒ ओत॒वा उ॑ ॥
pākaḥ pṛcchāmi manasāvijānan devānām enā nihitā padāni | vatse baṣkaye dhi sapta tantūn vi tatnire kavaya otavā u ||
पाकः॑। पृ॒च्छा॒मि॒। मन॑सा। अवि॑ऽजानन्। दे॒वाना॑म्। ए॒ना। निऽहि॑ता। प॒दानि॑। व॒त्से। ब॒ष्कये॑। अधि॑। स॒प्त। तन्तू॑न्। वि। त॒त्रि॒रे॒। क॒वयः॑। ओत॒वै। ऊँ॒ इति॑ ॥ १.१६४.५
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ।
ये कवय ओतवै बष्कये वत्से सप्त तन्तून् व्यधि तत्रिरे तेषामु देवानामेना निहिता पदान्यविजानन् पाकोऽहं मनसा पृच्छामि ॥ ५ ॥