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उप॑ ह्वये सु॒दुघां॑ धे॒नुमे॒तां सु॒हस्तो॑ गो॒धुगु॒त दो॑हदेनाम्। श्रेष्ठं॑ स॒वं स॑वि॒ता सा॑विषन्नो॒ऽभी॑द्धो घ॒र्मस्तदु॒ षु प्र वो॑चम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upa hvaye sudughāṁ dhenum etāṁ suhasto godhug uta dohad enām | śreṣṭhaṁ savaṁ savitā sāviṣan no bhīddho gharmas tad u ṣu pra vocam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑। ह्व॒ये॒। सु॒ऽदुघा॑म्। धे॒नुम्। ए॒ताम्। सु॒ऽहस्तः॑। गो॒ऽधुक्। उ॒त। दो॒ह॒त्। ए॒ना॒म्। श्रेष्ठ॑म्। स॒वम्। स॒वि॒ता। सा॒वि॒ष॒त्। नः॒। अ॒भिऽइ॑द्धः। घ॒र्मः। तत्। ऊँ॒ इति॑। सु। प्र। वो॒च॒म् ॥ १.१६४.२६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:164» मन्त्र:26 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:26


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (सुहस्तः) सुन्दर जिसके हाथ वह (गोधुक्) गौ को दुहता हुआ मैं (एताम्) इस (सुदुघाम्) अच्छे दुहाती अर्थात् कामों को पूरा करती हुई (धेनुम्) दूध देनेवाली गौरूप विद्या को (उप, ह्वये) स्वीकार करूँ (उत) और (एनाम्) इस विद्या को आप भी (दोहत्) दुहते वा जिस (श्रेष्ठम्) उत्तम (सवम्) ऐश्वर्य को (सविता) ऐश्वर्य का देनेवाला (नः) हमारे लिये (साविषत्) उत्पन्न करे वा जैसे (अभीद्धः) सब ओर से प्रदीप्त अर्थात् अति तपता हुआ (घर्मः) घाम वर्षा करता है (तदु) उसी सबको जैसे मैं (सु, प्र, वोचम्) अच्छे प्रकार कहूँ वैसे तुम भी इसको अच्छे प्रकार कहो ॥ २६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में रूपकालङ्कार है। अध्यापक विद्वान् जन पूरी विद्या से भरी हुई वाणी को अच्छे प्रकार देवें। जिससे उत्तम ऐश्वर्य को शिष्य प्राप्त हों। जैसे सविता समस्त जगत् को प्रकाशित करता है, वैसे उपदेशक लोग सब विद्याओं को प्रकाशित करें ॥ २६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह ।

अन्वय:

यथा सुहस्तो गोधुगहमेतां सुदुघां धेनुमुपह्वये। उताप्येनां भवानपि दोहत्। यं श्रेष्ठं सर्वं सविता नोऽस्मभ्यं साविषद्यथाऽभीद्धो घर्मो वर्षाः करोति तदु यथाहं सु प्रवोचं तथा त्वमप्येतत्सुप्रवोचेः ॥ २६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उप) (ह्वये) स्वीकरोमि (सुदुघाम्) सुष्ठुकामप्रपूरिकाम् (धेनुम्) दुग्धदात्री गोरूपाम् (एताम्) (सुहस्तः) शोभनौ हस्तौ यस्य सः (गोधुक्) यो गां दोग्धि (उत) अपि (दोहत्) दोग्धि (एनाम्) विद्याम् (श्रेष्ठम्) उत्तमम् (सवम्) ऐश्वर्यम् (सविता) ऐश्वर्यप्रदः (साविषत्) उत्पादयेत् (नः) अस्मभ्यम् (अभीद्धः) सर्वतः प्रदीप्तः (घर्मः) प्रतापः (तत्) पूर्वोक्तं सर्वम् (उ) (सु) (प्र) (वोचम्) उपदिशेयम् ॥ २६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र रूपकालङ्कारः। अध्यापका विद्वांसः पूर्णविद्यां वाणीं प्रदद्युः येनोत्तममैश्वर्यं शिष्याः प्राप्नुयुः। यथा सविता सर्वं जगत् प्रकाशयति तथोपदेशकाः सर्वा विद्याः प्रकाशयेयुः ॥ २६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात रूपकालंकार आहे. अध्यापक विद्वान लोकांनी विद्यायुक्त वाणी वापरावी. त्यामुळे उत्तम ऐश्वर्ययुक्त शिष्य प्राप्त होतील. जसा सूर्य संपूर्ण जगाला प्रकाशित करतो तसे उपदेशक लोकांनी विद्या प्रकट करावी. ॥ २६ ॥