वांछित मन्त्र चुनें

गा॒य॒त्रेण॒ प्रति॑ मिमीते अ॒र्कम॒र्केण॒ साम॒ त्रैष्टु॑भेन वा॒कम्। वा॒केन॑ वा॒कं द्वि॒पदा॒ चतु॑ष्पदा॒क्षरे॑ण मिमते स॒प्त वाणी॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gāyatreṇa prati mimīte arkam arkeṇa sāma traiṣṭubhena vākam | vākena vākaṁ dvipadā catuṣpadākṣareṇa mimate sapta vāṇīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गा॒य॒त्रेण॑। प्रति॑। मि॒मी॒ते॒। अ॒र्कम्। अ॒र्केण॑। साम॑। त्रैस्तु॑भेन। वा॒कम्। वा॒केन॑। वा॒कम्। द्वि॒ऽपदा॑। चतुः॑ऽपदा। अ॒क्षरे॑ण। मि॒म॒ते॒। स॒प्त। वाणीः॑ ॥ १.१६४.२४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:164» मन्त्र:24 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:24


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जो जगदीश्वर (गायत्रेण) गायत्री छन्द से (अर्कम्) ऋक् (अर्केण) ऋचाओं के समूह से (साम) साम (त्रैष्टुभेन) त्रिष्टुप्छन्द वा तीन वेदों की विद्याओं को (=की) स्तुतियों से (वाकम्) यजुर्वेद (द्विपदा) दो पद जिस में विद्यमान वा (चतुष्पदा) चार पदवाले (अक्षरेण) नाशरहित (वाकेन) यजुर्वेद से (वाकम्) अथर्ववेद और (सप्त) गायत्री आदि सात छन्द युक्त (वाणीः) वेदवाणी को (प्रति, मिमीते) प्रतिमान करता है और जो उसके ज्ञान को (मिमते) मान करते हैं वे कृतकृत्य होते हैं ॥ २४ ॥
भावार्थभाषाः - जिस जगदीश्वर ने वेदस्थ अक्षर, पद, वाक्य, छन्द, अध्याय आदि बनाये हैं, उसको सब मनुष्य धन्यवाद देवें ॥ २४ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरीश्वरविषयमाह ।

अन्वय:

हे विद्वांसो यो जगदीश्वरो गायत्रेणार्कमर्केण साम त्रैष्टुभेन वाकं द्विपदा चतुष्पदाऽक्षरेण वाकेन वाकं सप्त वाणीश्च प्रति मिमीते तज्ज्ञानं ये मिमते ते कृतकृत्या जायन्ते ॥ २४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गायत्रेण) गायत्री छन्दसा (प्रति) (मिमीते) रचयति (अर्कम्) ऋग्वेदम् (अर्केण) ऋचां समूहेन (साम) सामवेदम् (त्रैष्टुभेन) त्रिवेदविद्यास्तवनेन (वाकम्) यजुः (वाकेन) यजुषा (वाकम्) अथर्ववेदम् (द्विपदा) द्वौ पादौ यस्मिंस्तेन (चतुष्पदा) चत्वारः पादा यस्मिंस्तेन (अक्षरेण) नाशरहितेन (मिमते) (सप्त) गायत्र्यादिसप्तछन्दोन्विताः (वाणीः) वेदवाचः ॥ २४ ॥
भावार्थभाषाः - येन जगदीश्वरेण वेदस्थान्यक्षरपदवाक्यछन्दोऽध्यायादीनि निर्मितानि तस्मै सर्वे मनुष्या धन्यवादं दद्युः ॥ २४ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या जगदीश्वराने वेदातील अक्षर, पद, वाक्य, छन्द, अध्याय इत्यादी तयार केलेले आहेत, त्याला सर्व माणसांनी धन्यवाद द्यावेत. ॥ २४ ॥