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स॒प्त यु॑ञ्जन्ति॒ रथ॒मेक॑चक्र॒मेको॒ अश्वो॑ वहति स॒प्तना॑मा। त्रि॒नाभि॑ च॒क्रम॒जर॑मन॒र्वं यत्रे॒मा विश्वा॒ भुव॒नाधि॑ त॒स्थुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sapta yuñjanti ratham ekacakram eko aśvo vahati saptanāmā | trinābhi cakram ajaram anarvaṁ yatremā viśvā bhuvanādhi tasthuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒प्त। यु॒ञ्ज॒न्ति॒। रथ॑म्। एक॑ऽचक्रम्। एकः॒। अश्वः॑। व॒ह॒ति॒। स॒प्तऽना॑मा। त्रि॒ऽनाभि॑। च॒क्रम्। अ॒जर॑म्। अ॒न॒र्वम्। यत्र॑। इ॒मा। विश्वा॑। भुव॑ना। अधि॑। त॒स्थुः ॥ १.१६४.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:164» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:14» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अग्नि के प्रयोग से विमान आदि यान के विषय को कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जहाँ (एकचक्रम्) एक सब कलाओं के घूमने के लिये जिसमें चक्कर है उस (रथम्) विमान आदि यान को (सप्तनामा) सप्तनामोंवाला (एकः) एक (अश्वः) शीघ्रगामी वायु वा अग्नि (वहति) पहुँचाता है वा जहाँ (सप्त) सात कलों के घर (युञ्जन्ति) युक्त होते हैं वा जहाँ (इमा) ये (विश्वा) समस्त (भुवना) लोकलोकान्तर (अधि, तस्थुः) अधिष्ठित होते हैं वहाँ (अनर्वम्) प्राकृत प्रसिद्ध घोड़ों से रहित (अजरम्) और जीर्णता से रहित (त्रिनाभि) तीन जिसमें बन्धन उस (चक्रम्) एक चक्कर को शिल्पी जन स्थापन करें ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग बिजुली और जलादि रूप घोड़ों से युक्त विमानादि रथ को बनाय सब लोकों के अधिष्ठान अर्थात् जिसमें सब लोक ठहरते हैं, उस आकाश में गमनाऽगमन सुख से करें, वे समग्र ऐश्वर्य को प्राप्त हों ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोक्ताग्निप्रयोगतो विमानादियानविषयमाह ।

अन्वय:

यत्र एकचक्रं रथं सप्तनामा एकोऽश्वो वहति यत्र सप्त कला युञ्जन्ति यत्रेमा विश्वा भुवनाऽधितस्थुस्तत्राऽनर्वमजरं त्रिनाभिचक्रं शिल्पिनः स्थापयेयुः ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सप्त) (युञ्जन्ति) (रथम्) विमानादियानम् (एकचक्रम्) एकं सर्वकलाभ्रमणार्थं चक्रं यस्मिन् तम् (एकः) असहायः (अश्वः) आशुगामी वायुरग्निर्वा (वहति) प्रापयति (सप्तनामा) सप्त नामानि यस्य (त्रिनाभि) त्रयो नाभयो बन्धनानि यस्मिन् (चक्रम्) चक्रम् (अजरम्) जरादिरोगरहितम् (अनर्वम्) प्राकृताश्वयोजनरहितम् (यत्र) (इमा) (विश्वा) अखिलानि (भुवनानि) लोकाः (अधि) (तस्थुः) तिष्ठन्ति ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्युदग्निजलाद्यश्वयुक्तं यानं विधाय सर्वलोकाऽधिष्ठान आकाशे गमनाऽगमने सुखेन कुर्य्युस्ते समग्रैश्वर्यं लभेरन् ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक विद्युत व जल इत्यादीरूपी घोड्यांनी युक्त विमान इत्यादी रथ बनवून सर्व लोकांचे अधिष्ठान अर्थात् ज्यात सर्व लोक स्थित आहेत त्या आकाशात गमनागमन सुखाने करतील तेव्हा त्यांना संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त होईल. ॥ २ ॥