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नि॒क्रम॑णं नि॒षद॑नं वि॒वर्त॑नं॒ यच्च॒ पड्बी॑श॒मर्व॑तः। यच्च॑ प॒पौ यच्च॑ घा॒सिं ज॒घास॒ सर्वा॒ ता ते॒ अपि॑ दे॒वेष्व॑स्तु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nikramaṇaṁ niṣadanaṁ vivartanaṁ yac ca paḍbīśam arvataḥ | yac ca papau yac ca ghāsiṁ jaghāsa sarvā tā te api deveṣv astu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नि॒ऽक्रम॑णम्। नि॒ऽसद॑नम्। वि॒ऽवर्त॑नम्। यत्। च॒। पड्बी॑शम्। अर्व॑तः। यत्। च॒। प॒पौ। यत्। च॒। घा॒सिम्। ज॒घास॑। सर्वा॑। ता। ते॒। अपि॑। दे॒वेषु॑। अ॒स्तु॒ ॥ १.१६२.१४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:162» मन्त्र:14 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे घोड़े के सिखानेवाले ! (अर्वतः) शीघ्र जानेवाले घोड़े का (यत्) जो (निक्रमणम्) निश्चित चलना, (निषदनम्) निश्चित बैठना, (विवर्त्तनम्) नाना प्रकार से चलाना-फिराना (पड्वीशम्, च) और पिछाड़ी बाँधना तथा उसको उढ़ाना है और यह घोड़ा (यत्, च) जो (पपौ) पीता (यत्, घासिम्, च) और जो घास को (जघास) खाता है (ता) वे (सर्वा) समस्त उक्त काम (ते) तुम्हारे हों और यह समस्त (देवेषु) विद्वानों में (अपि) भी (अस्तु) हो ॥ १४ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे सुन्दर सिखाये हुए घोड़े सुशील अच्छी चाल चलनेवाले होते हैं, वैसे विद्वानों की शिक्षा पाये हुए जन सभ्य होते हैं। जैसे घोड़े आहार भर पी खाके पचाते हैं, वैसे विचक्षण बुद्धि विद्या से तीव्र पुरुष भी हों ॥ १४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे अश्वशिक्षक अर्वतो यन्निक्रमणं निषदनं विवर्त्तनं पड्वीशं चास्ति। अयं यच्च पपौ यद् घासिं च जघास ता सर्वा ते सन्तु एतत्सर्वं देवेष्वप्यस्तु ॥ १४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (निक्रमणम्) निश्चितं पादविहरणम् (निषदनम्) निश्चितमासनम् (विवर्त्तनम्) विविधं वर्त्तनम् (यत्) (च) (पड्वीशम्) पादबन्धनमाच्छादनं वा (अर्वतः) शीघ्रं गन्तुरश्वस्य (यत्) (च) (पपौ) पिबति (यत्) (च) (घासिम्) अदनम् (जघास) अत्ति (सर्वा) सर्वाणि (ता) तानि (ते) तव (अपि) (देवेषु) (अस्तु) ॥ १४ ॥
भावार्थभाषाः - यथा सुशिक्षिता अश्वाः सुशीलाः सुगतयो भवन्ति तथा विद्वच्छिक्षिता जनाः सभ्या जायन्ते यथाश्वा मितं पीत्वा भुक्त्वा जरयन्ति तथा विचक्षणा जना अपि स्युः ॥ १४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे प्रशिक्षित घोडे उत्तम चालीने चालतात, तसे विद्वानांकडून शिक्षण घेतलेले लोक सभ्य असतात. जसे घोडे आहार, खाणे-पिणे पचवितात तसे विशेष बुद्धीने माणसांनी विद्या प्राप्त करावी. ॥ १४ ॥