प्र व॒: पान्त॒मन्ध॑सो धियाय॒ते म॒हे शूरा॑य॒ विष्ण॑वे चार्चत। या सानु॑नि॒ पर्व॑ताना॒मदा॑भ्या म॒हस्त॒स्थतु॒रर्व॑तेव सा॒धुना॑ ॥
pra vaḥ pāntam andhaso dhiyāyate mahe śūrāya viṣṇave cārcata | yā sānuni parvatānām adābhyā mahas tasthatur arvateva sādhunā ||
प्र। वः॒। पान्त॑म्। अन्ध॑सः। धि॒या॒ऽय॒ते। म॒हे। शूरा॑य। विष्ण॑वे। च॒। अ॒र्च॒त॒। या। सानु॑नि। पर्व॑तानाम्। अदा॑भ्या। म॒हः। त॒स्थतुः॑। अर्व॑ताऽइव। सा॒धुना॑ ॥ १.१५५.१
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब एकसौ पचपनवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में पढ़ाने, उपदेश करनेवाले और ब्रह्मचर्य सेवन का फल कहते हैं ।
हरिशरण सिद्धान्तालंकार
विष्णु का अर्चन
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाध्यापकोपदेशकब्रह्मचर्यफलविषयमाह ।
हे मनुष्या धियायते महे शूराय विष्णवे च वोऽन्धसः पान्तं यूयं प्रार्चत याऽदाभ्या मित्रावरुणौ पर्वतानां सानुन्यर्वतेव साधुना महस्तस्थतुस्तावपि प्रार्चत ॥ १ ॥
डॉ. तुलसी राम
आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड
The attributes of the teachers and preachers and the benefits of Brahmacharya.
O men ! worship or respect highly learned persons who always desire to have pure intellect. Such a person is a great hero and he is extremely virtuous. Honor also the person who protects your food of various kinds. Such teachers and preachers are not to be hurt. They reach the radiant summit of the hills and attain the highest reputation like a well-trained horse. They should also be properly treated and honored.
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अध्यापकोपदेशक व ब्रह्मचर्याच्या फळाचे वर्णन असल्याने याच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥
