प्र विष्ण॑वे शू॒षमे॑तु॒ मन्म॑ गिरि॒क्षित॑ उरुगा॒याय॒ वृष्णे॑। य इ॒दं दी॒र्घं प्रय॑तं स॒धस्थ॒मेको॑ विम॒मे त्रि॒भिरित्प॒देभि॑: ॥
pra viṣṇave śūṣam etu manma girikṣita urugāyāya vṛṣṇe | ya idaṁ dīrgham prayataṁ sadhastham eko vimame tribhir it padebhiḥ ||
प्र। विष्ण॑वे। शू॒षम्। ए॒तु॒। मन्म॑। गि॒रि॒ऽक्षिते॑। उ॒रु॒ऽगा॒याय॑। वृष्णे॑। यः। इ॒दम्। दी॒र्घम्। प्रऽय॑तम्। स॒धऽस्थ॑म्। एकः॑। वि॒ऽम॒मे। त्रि॒ऽभिः। इत्। प॒देऽभिः॑ ॥ १.१५४.३
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ।
हे मनुष्या य एक इत् त्रिभिः पदेभिरिदं दीर्घं प्रयतं सधस्थं प्रविममे तस्मै वृष्णे गिरिक्षित उरुगायाय विष्णवे मन्म शूषमेतु ॥ ३ ॥