वांछित मन्त्र चुनें

पी॒पाय॑ धे॒नुरदि॑तिर्ऋ॒ताय॒ जना॑य मित्रावरुणा हवि॒र्दे। हि॒नोति॒ यद्वां॑ वि॒दथे॑ सप॒र्यन्त्स रा॒तह॑व्यो॒ मानु॑षो॒ न होता॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pīpāya dhenur aditir ṛtāya janāya mitrāvaruṇā havirde | hinoti yad vāṁ vidathe saparyan sa rātahavyo mānuṣo na hotā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पी॒पाय॑। धे॒नुः। अदि॑तिः। ऋ॒ताय॑। जना॑य। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। ह॒विः॒ऽदे। हि॒नोति॑। यत्। वा॒म्। वि॒दथे॑। स॒प॒र्यन्। सः। रा॒तऽह॑व्यः। मानु॑षः। न। होता॑ ॥ १.१५३.३

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:153» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मित्रावरुणा) सत्य उपदेश करनेवाले मित्रावरुणो ! (यत्) जो (अदितिः) अखण्डित, विनाश को नहीं प्राप्त हुई (धेनुः) दूध देनेवाली गौ के समान (हविर्दे) ग्रहण करने योग्य पदार्थों को देता उस (ऋताय) सत्य व्यवहार को प्राप्त हुए (जनाय) प्रसिद्ध विद्वान् के लिये (सुम्नम्) सुख को (पीपाय) बढ़ाता और (विदथे) विज्ञान के निमित्त (वाम्) तुम दोनों की (सपर्यन्) सेवा करता हुआ (रातहव्यः) जिसने ग्रहण करने योग्य पदार्थ दिये वह (होता) लेनेवाले (मानुषः) मनुष्य के (न) समान (हिनोति) वृद्धि को प्राप्त कराता है और (सः) वह जन उत्तम होता है ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो विद्या देने-लेने में कुशल, पढ़ाने और उपदेश करनेवाले सबको उन्नति देते हैं, वे शुभ गुणों से सबके अधिक उन्नति को पाते हैं ॥ ३ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मित्रावरुणा यद्योऽदितिर्धेनुरिव हविर्दे ऋताय जनाय सुम्नं पीपाय विदथे वां सपर्यन् रातहव्यो होता मानुषो न हिनोति स जन उत्तमो भवति ॥ ३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पीपाय) वर्द्धयति (धेनुः) दुग्धप्रदा गौरिव (अदितिः) अखण्डिता (ऋताय) सत्यं प्राप्ताय (जनाय) प्रसिद्धविदुषे (मित्रावरुणा) सत्योपदेशकौ (हविर्दे) यो हवींषि ददाति तस्मै (हिनोति) वर्द्धयति (यत्) यः (वाम्) युवाम् (विदथे) विज्ञाने (सपर्यन्) सेवमानः (सः) (रातहव्यः) रातानि दत्तानि हव्यानि येन सः (मानुषः) मनुष्यः (न) इव (होता) ग्रहीता ॥ ३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये विद्यादानग्रहणकुशला अध्यापकोपदेशकाः सर्वान् वर्द्धयन्ति ते शुभगुणैः सर्वतो वर्द्धन्ते ॥ ३ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे विद्या देण्याघेण्यात कुशल, शिकविणारे व उपदेश करणारे असून सर्वांची उन्नती करतात त्यांची शुभगुणांनी सर्वात अधिक उन्नती होते. ॥ ३ ॥