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यजा॑महे वां म॒हः स॒जोषा॑ ह॒व्येभि॑र्मित्रावरुणा॒ नमो॑भिः। घृ॒तैर्घृ॑तस्नू॒ अध॒ यद्वा॑म॒स्मे अ॑ध्व॒र्यवो॒ न धी॒तिभि॒र्भर॑न्ति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yajāmahe vām mahaḥ sajoṣā havyebhir mitrāvaruṇā namobhiḥ | ghṛtair ghṛtasnū adha yad vām asme adhvaryavo na dhītibhir bharanti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यजा॑महे। वा॒म्। म॒हः। स॒ऽजोषाः॑। ह॒व्येभिः॑। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। नमः॑ऽभिः। घृ॒तैः। घृ॒त॒स्नू॒ इति॑ घृतऽस्नू। अध॑। यत्। वा॒म्। अ॒स्मे इति॑। अ॒ध्व॒र्यवः॑। न। धी॒तिऽभिः॑। भर॑न्ति ॥ १.१५३.१

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:153» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब एकसौ त्रेपनवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में फिर मित्र-वरुण के गुणों का वर्णन करते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (घृतस्नू) घृत फैलानेवाले (मित्रावरुणा) मित्र और श्रेष्ठ जनो ! (वाम्) तुम दोनों का (सजोषाः) समान प्रीति किये हुए हम लोग (धीतिभिः) अंगुलियों से (अध्वर्यवः) अहिंसा धर्म की कामनावालों के (न) समान (हव्येभिः) देने योग्य (नमोभिः) अन्नादि पदार्थों से (घृतैः) और घी आदि रसों से (महः) अत्यन्त (यजामहे) सत्कार करते हैं (अध) इसके अनन्तर (यत्) जिस व्यवहार को (वाम्) तुम दोनों के लिये और (अस्मे) हमारे लिये विद्वान् जन (भरन्ति) धारण करते हैं, उस व्यवहार को धारण करो ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे यजमान अग्निहोत्र आदि अनुष्ठानों से सबके सुख को बढ़ाते हैं, वैसे समस्त विद्वान् जन अनुष्ठान करें ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मित्रावरुणगुणानाह ।

अन्वय:

हे घृतस्नू मित्रावरुणा वां सजोषा वयं धीतिभिरध्वर्यवो न हव्येभिर्नमोभिर्घृतैर्महो यजामहेऽध यद् वामस्मे च विद्वांसो भरन्ति तं धरतां च ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यजामहे) सत्कुर्महे (वाम्) युवाभ्याम् (महः) महत् (सजोषाः) समानप्रीताः (हव्येभिः) दातुमर्हैः (मित्रावरुणा) सुहृद्वरो (नमोभिः) अन्नादिभिः (घृतैः) आज्यादिभी रसैः (घृतस्नू) घृतस्य स्रावको (अध) अनन्तरम् (यत्) (वाम्) युवाभ्याम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (अध्वर्यवः) अध्वरं अहिंसाधर्मकाममिच्छवः (न) इव (धीतिभिः) अङ्गुलिभिः (भरन्ति) धरन्ति ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यजमाना अग्निहोत्राद्यनुष्ठानैः सर्वस्य सुखं वर्द्धयन्ति तथा सर्वे विद्वांसोऽनुतिष्ठन्तु ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात मित्र वरुण यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे ॥

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे यजमान अग्निहोत्र इत्यादी अनुष्ठानाने सर्वांचे सुख वाढवितात. तसे संपूर्ण विद्वान लोकांनी अनुष्ठान करावे. ॥ १ ॥