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आ धे॒नवो॑ मामते॒यमव॑न्तीर्ब्रह्म॒प्रियं॑ पीपय॒न्त्सस्मि॒न्नूध॑न्। पि॒त्वो भि॑क्षेत व॒युना॑नि वि॒द्वाना॒साविवा॑स॒न्नदि॑तिमुरुष्येत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā dhenavo māmateyam avantīr brahmapriyam pīpayan sasminn ūdhan | pitvo bhikṣeta vayunāni vidvān āsāvivāsann aditim uruṣyet ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। धे॒नवः॑। मा॒म॒ते॒यम्। अव॑न्तीः। ब्र॒ह्म॒ऽप्रिय॑म्। पी॒प॒य॒न्। सस्मि॑न्। ऊध॑न्। पि॒त्वः। भि॒क्षे॒त॒। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। आ॒सा। आ॒ऽविवा॑सन्। अदि॑तिम्। उ॒रु॒ष्ये॒त् ॥ १.१५२.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:152» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (धेनवः) धेनु गौयें (सस्मिन्) अपने (ऊधन्) ऐन में हुए दूध से बछड़ों को पुष्ट करती हैं वैसे जो स्त्री (ब्रह्मप्रियम्) वेदाध्ययन जिसको प्रिय उस (मामतेयम्) ममत्व से माने हुए अपने पुत्र की (अवन्तीः) रक्षा करती हुई (आ, पीपयन्) उसकी वृद्धि उन्नति करती हैं वा जैसे (विद्वान्) विद्यावान् जन (आसा) मुख से (पित्वः) अन्न की (भिक्षेत) याचना करे और (अदितिम्) न नष्ट होनेवाली विद्या का (आविवासन्) सब ओर से सेवन करता हुआ (वयुनानि) उत्तम ज्ञानों को (उरुष्येत्) सेवे वैसे पढ़ानेवाले पुरुष औरों को विद्या और सिखावट का ग्रहण करावें ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे माता जन अपने लड़कों को दूध आदि के देने से बढ़ाती हैं, वैसे विदुषी स्त्री और विद्वान् पुरुष कुमार और कुमारियों को विद्या और अच्छी शिक्षा से बढ़ावें, उन्नतियुक्त करें ॥ ६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

यथा धेनवः सस्मिन्नूधन्भवेन दुग्धेन वत्सान् पुष्यन्ति तथा या स्त्रियो ब्रह्मप्रियं मामतेयमवन्तीः सत्य आपीपयन् यथा वा विद्वानासा पित्वो भिक्षेताऽदितिमाविवासन् वयुनान्युरुष्येत्तथाऽध्यापिका स्त्री पाठकाः पुरुषा अन्यान् विद्याशिक्षा ग्राहयेयुः ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (धेनवः) (मामतेयम्) ममताया अपत्यम् (अवन्तीः) रक्षन्त्यः (ब्रह्मप्रियम्) ब्रह्म, वेदाध्ययनं प्रियं यस्य तम् (पीपयन्) वर्द्धयेयुः (सस्मिन्) स्वस्मिन्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति वलोपः। (ऊधन्) ऊधनि दुग्धाधारे (पित्वः) अन्नस्य (भिक्षेत) याचेत (वयुनानि) प्रज्ञानानि (विद्वान्) (आसा) आस्येन (आविवासन्) समन्तात् परिचरन् (अदितिम्) अविनाशिकां विद्याम् (उरुष्येत्) सेवेत ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा मातरः स्वापत्यानि दुग्धादिदानेन वर्द्धयन्ति तथा विदुष्यः स्त्रियो विद्वांसः पुरुषाः कुमारीः कुमारांश्च विद्यासुशिक्षाभ्यां वर्द्धयेरन् ॥ ६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी माता आपल्या मुलांना दूध देऊन वाढविते तसे विदुषी स्त्री व विद्वान पुरुषांनी कुमार व कुमारींना विद्या व चांगले शिक्षण देऊन उन्नत करावे. ॥ ६ ॥